मई जून के महीने में तापमान चालीस डिग्री सेल्सियस से प्रतिदिन उपर चला जाता है। कुंए सूख जाते हैं। हैडपैम्प से पानी नहीं निकलता है। भू जलस्तर लगातार नीचे चला जाता है। आसमान से आग बरसती है और हवाएं गर्म हो हल्की हो जाता है। उमस और लगातार पसीने से शरीर बेचैन हो उठता है। राहत देने वाले पक्के, ऊंचे मकानों की ईटें भी भांप फेंकती हैं। पानी की त्रास से होंठ सूखे हो जाते हैं और होंठों पर पपड़ी छा जाती है। प्रकृति से द्वन्द के लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है परंतु कृत्रिम व्यवस्था के सहारे वह अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागता है लेकिन मानव निर्मित कृत्रिम व्यवस्था विद्युत भी दम तोड़ दे रही है जिससे मानव व्याकुल हो प्रकृति के सामान्य होने का इंतजार कर रहा है, कम से कम अहरौरा और आप पास की जनता के साथ यही हो रहा है। बच्चें बिलख रहे हैं, रात रात लाईट न होने से गर्मी लग रही है बोल रहे हैं और हवाएं भी शांत, मौन हो मानव की प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी की आभास करा रही है। प्रति वर्ष बढ़ता तापमान, गिरता जल स्तर और मौन हवाएं प्रकृति का एक संदेश कह जाती है और कुछ इशारें कह जाती हैं। बस समझीये, कहीं हम चूक तो नहीं रहे हैं क्योंकि कूलर, एसी भी साथ नहीं दे रही है। योगी सरकार को विधायक और मोदी सरकार को मंत्री देने वाला अहरौरा आज भी विद्युत, गिरते जलस्तर की समस्याओं से जूझ रहा है।
हरि किशन अग्रहरि, अहरौरा की रिपोर्ट