ज्ञान-विज्ञान

वायरस संक्रमण से बचने के लिए हैंड सैनिटाइजर कितना उपयोगी?

0 बाल वैज्ञानिकों को दी गई वर्चुअल जानकारी
मिर्जापुर।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा समर्थित जिला विज्ञान क्लब मिर्जापुर एवं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के तत्वाधान में आज दिनांक 4 मई 2021 को वायरस के संक्रमण से बचने के लिए हैंड सैनिटाइजर की उपयोगिता, हैंड सैनिटाइजर के अत्यधिक प्रयोग से हानि उसके विकल्प में साबुन के घोल से हाथ धोने तथा प्राकृतिक सैनिटाइजर के प्रयोग के बारे में विशेषज्ञों द्वारा वर्चुअल जानकारी दी गई। इसमें 45 बार वैज्ञानिकों ने प्रतिभागीता  की।
विशेषज्ञ के रूप में जिला समन्वयक सुशील कुमार पांडे, आयुष चिकित्सक डॉ एके विश्वकर्मा, रसायन शास्त्री यूसी मिश्रा रहे। जिला समन्वयक सुशील कुमार पांडे ने बाल वैज्ञानिकों को बताया कि यह एक तरल जेल या फोम है जो आमतौर पर हाथों पर संक्रमण एजेंटों को कम करने के लिए उपयोग किया जाता है। हैंड सैनिटाइजर कीटाणुओं और बैक्टीरिया को हाथों से निकालता है। हैंड सैनिटाइजर में  60 फ़ीसदी अल्कोहल होता है इसके अलावा इसमें आइसोप्रोपिल एल्कोहल, ग्लिसरीन, हाइड्रोजन पराक्साइड, और स्ट्लेरेल वाटर शामिल होता है। यह सभी चीजें बाजार में खुले रुप में नहीं मिलती है। इसलिए रसायन युक्त सैनिटाइजर बनाने का खतरा ना ले बल्कि इसके स्थान पर साबुन और गुनगुने पानी से हाथ धोए।
कोरोना से बचने के लिए एल्कोहल आधारित हैंड सेनीटाइजर की आवश्यकता है। इस महामारी के बाद जितने भी सेंटाइजरके ब्रांड बाजार में उपलब्ध हैं वेसुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं हो सकते। अतः सैनिटाइजर खरीदते समय लेबल का ध्यान रखना चाहिए। सीडीसी के दिशा निर्देशों के अनुसार कम से कम 60% एथेनॉल और 70% आइसोप्रोपेनॉल वाले सेंटाइजर ही सुरक्षित है ।
         रसायन शास्त्री डॉक्टर यूसी मिश्रा ने बाल वैज्ञानिकों को बताया कि अधिकांश अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर एक्सपायरी डेट के साथ आता है ऐसा इसलिए है क्योंकि समय के साथ अल्कोहल का वाष्पीकरण होता है और ऐसा होने पर उसे हाथ पर लगाने पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कोई भी हैंड सेंटाइज़र चूने, जिसमें एंटीबैक्टीरियल एवं एंटीवायरल दोनों तरह के गुण हो और उसने 60 से 70% एल्कोहल होना जरूरी है सैनिटाइजर को हमेशा गर्मी से दूर एक ठंडी जगह पर ही रखें नहीं तो अल्कोहल का वाष्पीकरण हो सकता है फिर वह उपयोगी नहीं होगा।
         आयुष चिकित्सक एवं एवं शोध वैज्ञानिक डॉ एके विश्वकर्मा ने बताया कि आजकल बाजार में खुशबूदार सेंटाइजर भी आने लगे हैं, ऐसे में उन लोगों को ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है जो अधिक संवेदनशील होते हैं। ऐसे सेंटाइजरउनके लिए तनाव का कारण बन सकते हैं क्योंकि उसमें कई तरह के केमिकल्स उपयोग मिलाए जाते हैं। सेंटाइज़र का अधिक इस्तेमाल का असरबच्चों की सेहत पर भी पड़ सकता है इसलिए जितना संभव हो साबुन और गुनगुने पानी से हाथ धोना बेहतर है, यह दोनों वायरस को मारते हैं  परंतुसाबुन से हाथों को 20 सेकंड साबुन से वास करने से वायरस सफाया हो जाता है। अधिक सेंटाइजरका इस्तेमाल करने से हाथों की त्वचा रूखी होने लगती है इसमें टेलिसाइटो नामक एक केमिकल होता है जिसे हाथ की स्किन सोख लेती है जो नुकसान पहुंचा सकता है। इसके विकल्प में आप प्राकृतिक सेंटाईजर तैयार कर सकते हैं जो इसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाएगा। एलोवेरा जेल एक तिहाई कप, नीम और लौंग के तेल की 10 से 15 बूंदे, विटामिन ई एक साफ बर्तन में ले ले और इन सभी को एक साथ मिलाकर कुछ देर तक के लिए रख दे,इसके बाद प्रयोग कर सकते है अथवा सौ ग्राम ताजे नीम के पेड़ के पत्तों की छोटी टहनियां समेत रीठे के पेड़ की पत्तियां 50 ग्राम और एलोवेरा का एक टुकड़ा 40 मिनट के लिए 2 लीटर पानी में उबालें। अब इसमें 1 इंच फिटकरी का टुकड़ा और आधा इंच कपूर डालें और इसे स्प्रे बोतल में भरकर सैनिटाइजर के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
     वर्चुअल आयोजन के समापन सत्र में जिला समन्वयक ने सभी बाल वैज्ञानिकों को तथा विषय विशेषज्ञों का आभार प्रकट किया, तथा बाल वैज्ञानिकों को बताया कि संक्रमण से बचने के लिए बार-बार सैनिटाइजर अथवा साबुन पानी का प्रयोग जरूर करें, मास्को सुधारने से पहले भी सैनिटाइजर का प्रयोग अवश्य करें, तथा अपने आसपास के लोगों को घर के लोगों को दूरसंचार के माध्यम से मास्क लगाने, तथा हाथ साफ रखने एवं स्वच्छता पर ध्यान देने के लिए जागरूक करें। घर से बाहर अनावश्यक ना निकले, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, अपने को व्यस्त रखें तथा स्वस्थ स्वास्थ्य पर ध्यान दें।
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