दीया
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ये ठेले पर बिखरे दिये
बड़े खुश हैं तैयार है
इनकी साधना आज पूर्ण हो रही है
स्वप्न साकार होगा
ये जलेंगे
दमकेंगे
रोशन करेंगे
मिट्टी में गुथे गये हैं
कुम्हार की मार सहे है
आग में पकाये गये हैं
आज ठेले पर बिखरे
धूप में तप रहें हैं
पर ख़ुश हैं
बेताब हैं
घरों में जाने को
बाती से मिलने को
और कहीं घी तो
कहीं तेल में डूबकर
दमकने को
अमावस की रात को
चिढ़ाने और अपना वजूद दिखाने को
हम मिट्टी नहीं
हम रोशनी हैं
हम ख़ुशी हैं
हम दीपावली त्योहार हैं
हम मिट्टी नहीं
संकल्प हैं
गूथेंगे ,पकेंगे ,तपेंगे
ख़रीदारों की बाती और तेल में डूबकर
फिर पूरे जहाँ में जगमगायेंगे ।
ज्ञानेन्द्र नाथ पाण्डे “सरल “
ज़िला आबकारी अधिकारी
मिर्ज़ापुर