0 बरहिया माई भी करेंगी भूतों का फैसला, प्रशासन और पुजारी करेंगे भूत-प्रेत से ग्रस्त लोगों और श्रद्धालुओं को नियंत्रित
ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर(अहरौरा)।
बेचूवीर का ऐतिहासिक मेला का काल खण्ड करीब चार सौ वर्ष पुराना माना जाता है जब पूरा ईलाका जंगल था। विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं में इस क्षेत्र का विस्तार था। तब इस जंगल में खूंखार जंगली जानवरों का बसेरा था। शेर बाघ, भालू, हिरन आदि बहुयात थे।
माना जाता है कि बेचू यादव नामक एक चरवाहा अपने दूधारू जानवरों को चराने के लिए इसी जंगल में आया करते थे कि एक दिन इनका सामना खूंखार शेर से हो गया जो इनके जानवरों को घात लगाकर शिकार करना चाहता था। लेकिन बेचू यादव लाठी के सहारे ही उस शेर से भीड़ गये और जमकर युद्ध हुआ। जिसमें शेर और बेचू यादव दोनों की मृत्यु हो जाती है। इनके जानवर घर की ओर सुरक्षित लौट गये लेकिन बेचू यादव नहीं लौटे तो इनका पता लगाने के लिए इनकी पत्नी जंगल आयी जो उस समय गर्भवती थी। पति का शव देखकर वह विक्षिप्त सी हो गयी और घटना स्थल से लगभग सौ मीटर दूरी पर पहुंच कर प्राण त्याग दिये। दोनों के मृत्यु स्थल पर एक चौरी का कालान्तर में निर्माण किया जो बेचूवीर और बरहिया माई के नाम से प्रसिद्ध है। तब से मान्यता चली आ रही है कि भूत प्रेत से मुक्ति देने के लिए बेचूवीर और बरहिया माई दीपावली के बाद पड़ने वाले एकादशी को जागृत अवस्था में आ जाते हैं और बरहिया माई जहाँ निसन्तान दम्पतियों को संतान देने का आशीर्वाद देती है वहीं बेचूवीर भूत प्रेत से व्यक्तियों की रक्षा करते हैं। एकादशी की भोर में जो इस बार मंगलवार को पड़ रहा है को मनरी नाम का एक बाजा बजता है जिसके बाद बाल खोलकर, विचित्र हरकतें करते हुए महिलाएं और पुरुष विवाहित एक किलोमीटर के एरिया में जहाँ कहीं भी रहेंगे वहाँ से भागते हुए बेचूवीर की चौरी पर पहुंचते हैं। सिर बार बार जमीन पर पटकते हुए बेचूवीर का जयकारा लगाते हैं।
प्रशासन रोशनी करने , एलाउंस करने और भीड़ को नियंत्रित करने के साथ ही साथ जाम को हटाने में व्यस्त रहता है। जेबकतरों, जुआ खिलाकर लूटने वाले तथा अशांत तत्व से निपटने के लिए परेशान हो जाती है।
बेचूवीर मेला में अजीब गरीब भूतों का आगमन होता है, कोई लड़की कब लड़के की आवाज में बात करने लगे, एक बुढ़िया चार चार हट्टे-कट्टे को झटकारते हुए फेंक दे, कब कोई औरत तेजी से रोने लगे, कब किसकी आंखे लाल हो जाय, कब कोई पत्थर पर अपना माथा पीट ले, कब कोई अपने ही भाई को गाली देने लगे, कब कोई औरत अर्द्ध नग्न हो जाय, कब कोई बंदर बंदरियों की हरकत करने लगे और कब कोई आपको एकटक देखते हुए डराने लगे, कुछ कहा नहीं जा सकता है। विज्ञान और आस्था का मल्लयुद्ध किसी तिलस्म की तरह होता है। मगर ज्यादातर लोगों शिक्षित और अशिक्षित दोनों का कहना होता है कि वह विज्ञान से निराश होकर यहाँ आये हैं। यह मेला तीन दिवसीय होता है जो नवमी से एकादशी तक चलती है। अधिकांश लोगों का पिछले वर्ष में कहना था कि यहाँ कोई शक्ति जरूर है जो हमारा भला करती है तभी तो हम बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान से आये हैं। भूत प्रेतों का ताण्डव देखना हो तो एक बार अहरौरा के बरही ग्राम जरूर आईये।