धर्म संस्कृति

राजा बाबा की गद्दी पर मत्था टेक लोगो ने मन्नते मागी

ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर। 
जिले के 96 विकास खंड अंतर्गत विजयपुर पहाड़ी स्थित स्वामी ओमानंद जी महाराज राजा बाबा की बावली पर रामनवमी के उपलक्ष्य में हजारों दर्शनार्थियों ने पहुंच कर राजा बाबा की गद्दी पर मत्था टेका।  आयोजित भंडारे में प्रसाद ग्रहण कर खुद को कृतार्थ किया। रामनवमी के उपलक्ष में प्रातः काल पहुंचे स्वर्गीय अमरनाथ अग्रहरि के पुत्र रवीश कुमार अग्रहरि ने राजा बाबा की गद्दी को फूल मालाओं आदि से सजाकर राजा बाबा का चित्र उनकी गद्दी पर स्थापित किया।  तत्पश्चात राजा बाबा की गुरु वंदना “जो गुरु जीवन को लख्यो डूबत जगत मझार, जन्म मरण बड ग्राह सो अविरत दुखी अपार” और श्री राम चंद्र कृपाल भजु मन का गायन कर राजा बाबा की आरती उतारी।  तत्पश्चात भोग लगाकर पूरे दिन प्रसाद का वितरण किया गया।  इस दौरान राजा बाबा द्वारा स्थापित पतरके महादेव का भी भव्य श्रृंगार किया गया।  पूरे दिन दर्शनार्थियों के आने का क्रम जारी रहा।  लोगों ने राजा बाबा की गद्दी, पतरके महादेव, दुर्गा जी पर मत्था टेककर आशीर्वाद प्राप्त किया।  इस अवसर पर विशाल भंडारे का भी आयोजन किया गया।  जिसमें हजारों भक्तों ने प्रसाद ग्रहण कर खुद को कृतार्थ किया।  इस अवसर पर एडवोकेट श्रीश कुमार अग्रहरि, विमलेश अग्रहरि भरतलाल अग्रहरि,  मंत्री प्रसाद सोनकर सहित अन्य लोग सहयोगरत रहे।
जाने ऐसे ऐतिहासिक स्थल का इतिहास 
आध्यात्मिक और लाभदायक है नेपाल नरेश द्वारा सौ साल पहले बनी बावली
0 सूर्य की रोशनी से चलती थी पत्थर की घड़ी 
0 कुंड के जल के स्नान से तमाम प्रकार के रोगों से मिलती है मुक्ति 
एसके अग्रहरि
ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर। 
एक योगी द्वारा ओमकार कुण्ड के चारों कोनों पर स्थापित पत्थर की घड़ियां कभी सूर्य की रोशनी से चला करती थीं। पर इसके निर्माता के चले जाने के बाद यह केवल एक शिलाखण्ड बनकर रह गया है। तपोवन में नेपाल नरेश ओमानन्द जी महाराज (स्वामी राजाबाबा) द्वारा बनाया गया कुण्ड छानबे विकास खण्ड के लिये एक इतिहास ही है। कुण्ड के जल से रविवार व मंगल को स्नान मात्र से अतरा, चौथिया, तिजारा एवम् अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। छानबे विकास खण्ड मुख्यालय विजयपुर से लालगंज मार्ग पर उत्तर दिशा में 4 किलोमीटर दूर स्थित तपोवन ओमकार कुण्ड का एक विशेष योगदान क्षेत्रवासियों के लिए है। वर्ष 1925 आसपास में नेपाल नरेश स्वामी राजाबाबा (ओमानन्द महाराज) अपनी गद्दी छोड़कर तप के लिए आये। तपोवन (पतरके महादेवन) पर ही उन्होंने अपने शिष्यों के सहयोग एवम् ईश्वर महिमा से ओमकार कुण्ड की स्थापना किया। धीरे-धीरे उस कुण्ड की पक्की बावली के रूप में परिवर्तित किया गया उन्होंने इस बावली के ऊपर स्थित चारों कोनों पर पत्थर का गोल आकार वाला सुडौल पत्थर रखकर सूर्य की रोशनी से चलने वाले पत्थर की घड़ी बनाई। इन चारों गोल पत्थरों में से पहले में पूरब-पश्चिम दो सुईंयां, दूसरे में पश्चिम-उत्तर व दो सुईयां, तीसरे में से एक सुई सहित केवल पूरब और चौथे में केवल पश्चिम अंकित किया। यह घड़ियां जब तक स्वामी राजाबाबा वहां पर रहे तब तक चलती रहीं। यहां से उनके चले जाने के बाद इसका चलना बन्द हो गया। कालान्तर में पश्चिम दिशा तीर सहित अंकित एक गोल पत्थर भी उस कुण्ड से गायब हो गया। उसके स्थान पर श्रद्धालुओं ने एक दूसरा बेडौल पत्थर रखकर घड़ी चलाने का प्रयास किया। पर भला ग्रामीणों में स्वामी जी जैसी शक्ति कहां जो उसे चला पाते। तपोवन कुण्ड की देखभाल में लगे स्वामी जीवनानन्द जी महाराज ने बताया कि स्वामी राजाबाबा द्वारा निर्मित इस कुण्ड का जल कभी भी समाप्त होता और न ही इसमें एक कीड़ा दिखायी पड़ता है। कुण्ड में समस्त देवालयों एवम् पवित्र स्थलों का जल भी डाला था। यहां के जल से स्नान मात्र से अतरा, चौथिया, तिजारा एवम् अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। अधकपारी जैसे रोग से मुक्ति के लिए स्वामी राजाबाबा द्वारा अधकपारी का वृक्ष भी लगाया है। कुण्ड के पास से ही स्थित इस वृक्ष के नीचे बैठने मात्र से अधकपारी सदा-सदा के लिए दूर हो जाती है।

सौ साल पहले की थी दुर्लभ आध्यात्मिक ग्रंथो की रचना, जो सभी धर्मो के लिए है उपयोगी

 स्वामी राजाबाबा (नेपाल नरेश) द्वारा दर्जनों दुर्लभ माने जाने वाले ग्रंथों की रचना भी की गयी है। जिसकी काफी पुरानी प्रति विजयपुर निवासी एडवोकेट श्रीश कुमार अग्रसर के पास मौजूद है। बताया जाता है कि यह सभी पुस्तक और राजाबाबा की फोटो जिसमे उनके गुरू व गुरू भाइयो की मौजूदगी है। आदि लाने के लिए एडवोकेट श्री अग्रहरि ने बताया कि उनके पिता स्व0 अमरनाथ अग्रहरि झूसी और जबलपुर तक गये। वर्तमान मे यह सभी पुस्तके जिनका प्रथम प्रकाशन अब से लगभग नौ दशक पहले हुई थी। उनके पास सुरक्षित और संरक्षित है।  रचित पांच धर्म पुस्तकें व ज्ञान चौसर क्षेत्रवासियों के लिए एक यादगार बन गये हैं। पहली पुस्तक वेदान्त सिद्धान्त मुक्तावली है। इस पुस्तक में सभी शास्त्रों एवम् वेदों के भाव में शंका समाधान के लिए अद्वैत का प्रतिपादन किया गया है। दूसरी पुस्तक जौहरी आलम उकबय नजात में वेद, शास्त्र, कुरान व अहदीस तसौफ व वेदान्त की एकता और मंत्र व आयत की समता मिलती है। पुरूषार्थ कल्पतरू राजाबाबा द्वारा रचित सर्वहितकारक सम्यक् उपदेश है। इस पुस्तक के अवलोकन मात्र से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष प्रक्रिया के साथ प्राप्त होते हैं। चौथी रचना भजन ओमावली, प्रथम में सर्वधर्म निगभागम का भाव स्पष्ट किया गया है। इसके द्वितीय भाग में वेद शास्त्र, उपनिषद्, भागवत, आयत, अहदीस के भाव प्रकट किये गये है। ज्ञान चौसर एक खेल बनाया है इसे खेलने से शुभ-अशुभ का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है। यह कौड़ियों से खेला जाता है। इस खेल के लिए उन्होंने कहा है कि आरिफ्रूल बाजी ऐ जनाब खेलो तो फिर न आना है यहां। इसको समझकर फौरन होगा मालूम खेल ही सब उसूल।

बनाई थी जगत के अवधि पर्यंत की जंत्री

राजाबाबा द्वारा जगत की अवधि पर्यन्त की एक यंत्री भी बनायी गयी है। इससे जब तक अंग्रेजों की तारीख कायम रहेगी तब तक तारीख व वार के नाम के अक्षरों से भूत-भविष्य का ज्ञान हो सकता है। यह यंत्री इस समय ताम्रपत्र पर स्वामी ओमानन्द कृत राजाबाबा द्वारा विजयपुर गांव स्थित तकिया पर मौजूद है। वर्ष 1935 में स्वामी राजाबाबा तपोवन से चले गये और आज तक पता नहीं चल पाया। राजाबाबा के तपोवन कुण्ड पर ही संवत् 2026 चैत्र रामनवमी के दिन काशी संयास आश्रम वाराणसी के महंथ यन्मथानन्द भारती द्वारा यहां धर्मशाला की स्थापना भी की गई है। संवत् 2026 से ही हर वर्ष यहां चैत्र रामनवमी के दिन मेले का आयोजन होता है और श्रद्धालुओं का भीड़ इकट्ठा होता है। इस दौरान अपने पिता के आदेश को आत्मसात करते हुए स्व0 अमरनाथ अग्रहरि के परिवार लोग राजाबाबा की गद्दी पर उनका चित्र आदि रखकर रामनवमी मनाते है।

यथा अन्न तथा मन्न

माना जाता है कि नेपाल नरेश स्वामी ओमानंद जी महाराज आज से सौ वर्ष से कुछ वर्ष पहले एक अद्वितीय शक्ति वाले ब्रह्म साक्षात्कार वाले ही संत थे। दंतकथा है कि एक बार राजा बाबा के आश्रम पर विजयपुर गांव के उस समय के नगर सेठ पन्ना लाल भोजन लेकर पहुचे। जब वे राजाबाबा के गद्दी से सौ मीटर दूर ही थे कि राजा बाबा बोले कि ” भाग जो पन्नवा आज तोर खाना न खाब” और पन्ना लाल की हिम्मत न हुई कि वो फिर आगे बढे। घर लौटकर आये तो पता चला कि घर मे खाना बनाने के लिए देवरानी जेठानी मे नोकझोंक हुआ था। शायद इसी लिए राजाबाबा ने वह अन्न ग्रहण नही किया। शायद तभी तो कहा गया है यथा अन्न तथा मन्न।

सूखा रोग से ग्रसित अमरनाथ को मिला था जीवनदान

फोटोसहित 0071
 विजयपुर निवासी स्व0 अमरनाथ की पत्नी श्रीमती शांती देवी बताती है कि उनके ससुर ने बताया था कि जब हमारे पति छह माह के थे। तो वे सूखा रोग से पीडि़त हो गये थे। आज के जमाने मे सूखा रोग से ग्रसित बच्चे नही बचा पाते जरा सोचिए सौ साल पहले क्या स्थिति रही होगी ऐसे रोग के पीडि़त की। बताया कि एक दिन राजाबाबा भोजन के लिए आये और बाहर पत्थर के चबूतरे पर बैठ गये। पन्ना लाल उस छह माह के बच्चे को लेकर आये और बोले महराज इ त न बची। ल एके गोदी मे लेवल,  इस पर राजाबाबा बोले कि का हमरे गोदी लिये से ई अमर होई जाये। पन्ना लाल बोले कि हम महराज। राजाबाबा उस बालक को गोद ले लिये और पन्ना लाल ने बेटे का अमरनाथ नाम रख दिरा। और मेरे पति स्व0 अमरनाथ आर एस एस का कार्य उस समय खण्ड कार्यवाह के रूप मे वर्तमान गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ महिने महिने भर छानबे क्षेत्र मे संघ कार्य किया। 55 साल की अवस्था मे मेरे पति का स्वर्गवास हो गया। शायद राजाबाबा का आशीष न होता तो 55 साल कैसे जीवित रहते।

बडे-बडे चट्टान खुद पहुच जाते थे अपने स्थान पर 

विजयपुर गांव के ही कुछ शिष्यो ने बताया था कि जब पतरके महादेवन मे वे बावली बना रहे थे और उसके ईर्द गिर्द पहाड़ से मोटे मोटे चट्टान बावली तक लाकर पकका निरमाण करना चाह रहे थे। जब उनके दस बारह शिष्य वहा जाकर बहुत प्रयास करते पर चट्टान से निकला पत्थर उठता तक न। राजाबाबा कहते कि जाना दो कल आएगा। और जब सभी देर शाम चले जाते और सुबह लौटकर आते तो पाते कि वह विशालकाय पत्थर तो उचित स्थान पर पहुंच चुका है। यह दंतकथा बिल्कुल ही इस बात का साक्षी है कि राजाबाबा अपने दिव्य शक्ति से उन विशाल चट्टानो को ही लाते रहे थे।

कैसे बनी फोटो, जाने उसका भी इतिहास

 
दंतकथा है कि जिस परमहंस ओमानंद जी महाराज राजबाबा के आशीष से अमरनाथ को जीवनदान मिला। जब वे बडे हुए तो माता पिता से जानकारी पाते हो उस संत के बारे मे पता करने जबलपुर की टुनटूनिया पहाडी पर पहुच गये। जहा गुफा मे जाने के बाद से राजबाबा अदृश्य हुए थे। यानी यू कहे कि उन्होंने बहुत ही कम अवस्था मे उसी पहाडी के गुफा मे गये और फिर बाहर कभी नही निकले। लोग उसे स्थान पर आध्यात्मिक शक्ति देख पूजा पाठ शुरू कर दिया। स्व0 अमरनाथ की पत्नी शांती देवी बताती है कि वहा से अमरनाथ झूसी आश्रम आये और यही उन्हे राजबाबा की रचित सभी पुस्तके और एक दुर्लभ फोटो जिसमे अपने गुरू और गुरू भाइयो के साथ पेंसिल से बनी फोटो दी गई। उस समय राजाबाबा के गुरूभाई ने अमरनाथ से कहा था कि फोटो राजाबाबा की गद्दी पर रखकर रामनवमी के दिन पूजा जरूर करना। अमरनाथ फोटो और मात्र एक एक पुस्तक लेकर चले आये। वही फाईल फोटो आपके अवलोकनार्थ लगा है। बताते है कि झूसी से लौटने के बाद उन्होंने राजा बाबा का अकेला फोटो पेंसिल से बनवाया और वह चित्रकार छह महिने मे एक फोटो बनाया। कहा जाता है कि वह चित्रकार जब भी फोटो बनाने बैठता तो उसके घर कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती। इसलिए वह कई बार फोटो बनाने से मना भी किया लेकिन उस जमाने मे फोटो से फोटो वह भी पेन्सिल से बनाने वाला पूरे मिर्जापुर शहर मे कोई नही था। इसलिए किसी तरह अनुनय बिनय करके वह फोटो बनवाया । जो स्व0 अमरनाथ के घर मे संरक्षित है। और  पेंसिल से बने इसी फोटो से कालान्तर मे फोटो बनवाकर उन्होने अपने भाई मानिकचंद जी अग्रहरि के साथ ही जबलपुर और गोपालगंज के कई शिष्यो और  भक्तो को उपलब्ध कराया। स्व0 अमरनाथ जब तक जीवित रहे। राजबाबा की गद्दी पर हिसाब उनका फोटो रखकर पूजा पाठ कर प्रसाद वितरित करते रहे। उनके बाद इस परंपरा का निर्वहन लगातार उनके पुत्र रवीश अग्रहरि, श्रीश अग्रहरि, राकेश अग्रहरि पुत्रिया मुन्नी सुनीता मंजू और नाती पोते आदि करते आ रहे है। यही नही भरत लाल अग्रहरि जी तो नियमित स्नान ध्यान करने राजाबाबा की बावली पहुचते है और स्वामी राजाबाबा के आदर्शो और विचारो को जन जन तक पहुचाने का कार्य कर रहे है। अक्सर जबलपुर भी आना जाना लगा रहता है।
Sent from my Samsung Galaxy smartphone.
Banner VindhyNews
error: Right Click Not Allowed-Content is protected !!