शिक्षा के मंदिर में लाखों के घोटालों का खुलासा अब तक नहीं हुआ
ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर (अहरौरा)।
दौलत की चमक ज्ञान बांटने वालों को पहले दबोच लेती है। कम से कम अहरौरा में ज्ञान का पर्याय बना एक चर्चित इण्टर कालेज का यही हाल है। आयोग से चयनित प्रधानाचार्य को यह मालूम नहीं कि ‘माननीय ‘ शब्द की उपयोगिता कहां होती है। जिस पर विवाद छिड़ने पर इन्हें लिखित रूप से माफी मांगनी पड़ी है। आरोप है कि शिक्षा के मंदिर की कमान जब से इन्हें मिली है, तब से तमीज और तहजीब का स्तर भी गिर चुका है। अभी कुछ माह पूर्व इस विद्यालय पर बहत्तर लाख रुपये का गबन का आरोप लगा था। सूत्रों के मुताबिक जब पूछताछ की गई तो संबंधित दस्तावेज दिमक चाट गये और जो सही सलामत थे सबके सब गांधी छाप थे, जिसको देखने के बाद मामला दबा पड़ा है। ऐसा आरोप है। ऊंची पसंद, ऊंची रसूख के कारण कभी भी इसकी दोबारा जानकारी नहीं हो पायी है। इस विद्यालय का जनमानस में चर्चा रहती है कि जब से प्रधानाचार्य ने कार्यभार संभाला है तब से कई खंडहर बच्चों को मिलने वाला मीड डे मिल से ही ठीक ठाक हो गये हैं। समाज सनकी बाबाओं और दबंग शिक्षकों से डरने लगा है। और तो और इस विद्यालय में अनुशासन के नाम से बच्चों के शोषण होने की भी अफवाह है। अपुष्ट खबरों की माने तो शिक्षा जगत के बाबूओं से इस प्रधानाचार्य की सेटिंग्स है। आखिरकार क्या कारण है कि इस विद्यालय पर सरकारी धन के गबन की आरोप लगे, लेकिन सच्चाई अभी भी पर्दे के पीछे कोसों दूर है। सूत्रों की मानें तो कुछ समाज सेवी इस विद्यालय की जांच के लिए बेसिक शिक्षा मंत्री से भी मिलने वाले हैं।
गुरू शिष्य परम्परा अब भी इतिहास के पन्नों में जीवित
पहले शिक्षा, संस्कार और धर्म का ज्ञान मिलता था। शिष्य पूरी तरह निपुण होने के बाद गृहस्थ आश्रम की जाने को उन्मुक्त होता था तो शिष्य अपनी योग्यतानुसार गुरु को दक्षिणा देता था, कुछ तो कार्य भार संभालने के बाद गुरु दक्षिणा देते थे। लेकिन आज दक्षिणा नहीं तो शिक्षा नहीं, फी जमा नहीं तो शिक्षा, ज्ञान, संस्कार नहीं दिया जाता है। शिक्षा का व्यापारीकरण हो गया है, गुरू शिष्य के भाव बदल गये हैं। दो महीने का वेतन नहीं मिला तो हड़ताल करते हैं। उनसे क्या मतलब कि शिष्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? उसकी शिक्षा और ज्ञान का क्या होगा? सुबह मेरी बेटी ने तीस रूपये मांगा तो मैंने पूछ लिया क्या करोगी? तो वह बोली – मैडम ने कहा था कि कल शिक्षक दिवस है, क्लास के सभी बच्चों को शिक्षक सेवा भाव के लिए तीस रूपये लाने है। मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक समस्याओं से ग्रसित शिक्षकों को आज का दिन मात्र जबरदस्ती का सम्मान दिवस है। आयोग से धन बल से पास होने, अस्सी वाला फेल बीस वाला पास शिक्षक और विश्वामित्र, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, वशिष्ठ और बाल्मीकि का नाम लेकर दुकान चलाने वाले आर्थिक हानि होने पर कब कर्कश आवाज़ में बात करने लगे कुछ कहा नहीं जा सकता है। इस लिए इस शिक्षक दिवस की उपयोगिता भाव प्रधान नहीं है बल्कि शिक्षक और छात्र के मध्य आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में मनोरंजन का साधन है। इसलिए सात्विक गुणों की आकांक्षा के साथ शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।