0 भव्य श्रंगार के उपरांत लगा छप्पन भोग
ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर।
नगर के बूढेनाथ सत्तीमार्ग स्थित सैकड़ो वर्ष प्राचीन बेटी जी के मंदिर मे ठाकुर जी का छप्पन भोग बेटीजी का मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान मे शुक्रवार को लगाया गया। मंदिर का देखरेख कर रहे प्रबंधक पं0 दीनानाथ तिवारी एवं व्यवस्था मे लगे मंदिर के ट्रस्टी प्रेम रतन राठी ने बताया कि बेटी जी मंदिर स्थित ठाकुर जी का भव्य श्रंगार करने के उपरांत शुद्ध घी निर्मित कच्चा पक्का छप्पन भोग का प्रसाद उन्हे अर्पित किया गया और सायं छ बजे से छप्पन भोग दर्शन के लिए मंदिर का प्रवेश द्वार खोल दिया गया।
महिला पुरूष श्रद्धालु अलग अलग कतारबद्ध होकर दर्शन कर रहे थे और श्रद्धा शक्ति अनुसार छप्पन भोग प्रसाद के लिए रसीद भी कटा रहे थे। प्रेम रतन राठी जी ने बताया कि 28 अक्टूबर को सत्संग भवन मे सत्संग का आयोजन सायं तीन से छह बजे तक किया जायेगा। जिसमे नगरवासी सादर आमंत्रित है। बताया कि इस कार्यक्रम मे प्रभु चौरसिया भी पहुच रहे है। इस अवसर पर अनुज अग्रवाल, राजकुमार खेतान, राजेश अग्रवाल, कमलेश गुप्ता, ओम कुमार, पारो बाई, निशा रानी राधा आदि सहयोग रत रहे।
क्या है किवदंती: जाने बेटीजी मंदिर का आध्यात्मिक महत्व
कृष्ण भक्ति के जग प्रसिद्ध महात्मा बिट्ठल स्वामी के पुत्र गिरधर जी महाराज ने गोवर्धन जी का प्रतिमा मथुरा मे स्थापित किया और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते रहे।औरंगजेबके समय मे जब मंदिर तोडे जाने लगे तो वहा से यह प्रतिमा उदयपुर ले जाया गया। हवेली का निर्माण कराकर महाराणा राज सिंह ने वैष्णव रीति से गोवर्धन जी का पूजा शुरू कर दिया। यहा आने वाले भक्तो मे एक किशोरी बडे भाव से भक्ति मे मगन रहा करती थी। जिसे बेटी जी के साथ ही दूसरी मीरा की उपाधि दी जाने लगी।
जब वह सयानी हुई तो परिवार जनो ने मंदिर पर आने मे पाबंदी लगा दी। बताते है कि तब बेटी जी ने घर पर ही अन्न जल त्याग कर तप करने लगी तो प्रसन्न होकर ठाकुर जी ने स्वप्न मे कहा कि मै यमुना जी की रेती पर प्रतीक्षा कर रहा हू। तब बेटी जी राजस्थान से मथुरा आई यहा रेती मे थोडा नीचे गोवर्धन नाथ स्वामी की हूबहू मंदिर जैसी भव्य प्रतिमा प्राप्त हुई। इस प्रतिमा को काशी मे स्थापित करने के भाव से नाव पर रखकर आगे बढी।
किवदंती है कि मिर्जापुर के दाऊघाट पर विश्राम के लिए रूकी नौका उन दिनो काफी चेष्टा करने पर भी आगे नही बढी तो बेटी जी दुखी हो गई। रात मे बेटी जी को स्वप्न मिला कि मेरे बडे भाई दाऊ जी यही विराजमान है। मैं भी यही रहूंगा। प्रसन्न बेटी जी ने दाऊ जी के मंदिर मे ठाकुर जी को रखकर पूजा प्रारंभ कर दिया। मिर्जापुर के सेठ साहूकारो ने 1700 के आसपास जनसहयोग से बूढेनाथ सतीरोड पर गोवर्धन जी के लिए हवेली का निर्माण करा दिया। यही पर भगवान ठाकुर जी की पूजा करते करते उन्ही मे लीन हो गई। तब से इस मंदिर का नाम बेटी जी का मंदिर जाना जाने लगा।
एक किवदंती है कि एक बार यहा पुजारी रात मे लड्डू का भोग लगाना भूल गये। तो ठाकुर जी अपने बाल रूप मे बाजार मे निकल गये और हाथ का कडा दुकानदार को देकर लड्डू खा गए। सुबह जब दर्शनार्थीयो ने एक हाथ मे कडा नही देखा तो हतप्रभ रह गये थे। हल्ला सुनकर हलवाई की बहू आई और बताया कि एक बालक रात मे यह कडा देकर लड्डू ले गया था। इस तरह की कई अन्य किवदंती भी है।