ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर। शारदीय नवरात्रि के तृतीय दिवस को अन्तरराष्ट्रीय सुप्रसिद्ध तथा लोकप्रिय सन्त मोरारी बापू जी ने राम के स्तुति करते हुए श्री हनुमान जी को ध्यान लगाते हुए श्रोताओं को व्यास पीठ से प्रणाम करते हुए सभी का अभिवादन किया। बापू ने कहा नौ दुर्गा की स्तुति सिद्धि के लिए नहीं बल्की आत्मषुद्धि के लिए करना चाहिए। मैं आज इस तीनों महा देवीयो के सानिध्य में कथा वाचन कर रहा हूं। यह सब मां की अनुकम्पा की वजह से है। यंत्र-तंत्र, मंत्र इनका अर्थ मेरे निज विचार में तीनों ही साधना यह तीनों सिद्धि है आपका जो मन करे इसे उस ओर ले जा सकते है। शुद्धि को किसी को दिखाने की जरुरत नहीं होती मेरे निज वचन में यंत्र सदैव अपवाद होता है, तथा तंत्र साधना तामसी होने के साथ-साथ अपवाद भी होता है। मंत्र साधना कभी-कभी तामसी होती है तो कभी राजसी होती है, लेकिन श्री राम साधना केवल और केवल गुणी होती है। यह मेरे विचार से इस विषय में सबके अलग-अलग विचार हो सकते है।
कहाकि जिस प्रकार से भगवान श्रीकृष्ण एवं शिवशंकर जी बहुत बड़े साधक है जो अपने स्वभाव से जीते है, इन्हें भी कोई प्रभावित नहीं कर सकता। आज इंसान दूसरों के हाव-भाव को देखकर तुरन्त ही प्रभावित हो जा रहा है। मै चैबीस घण्टा अपने स्वभाव से जी रहा हूं इसलिए मुझे कोई प्रभावित नहीं कर सकता। मैं सब कुछ सुनता और देखता हूं लेकिन मुझे कोई भी सामग्री प्रभावित नहीं कर सकती, प्रभावित तो वहीं होता है जो दूसरों के स्वभाव में जीता है। किसी ने मुझसे पूछा बापू जी आप तो कहे थे कि नौ दिन मां को चुनरी चढ़ायेगें लेकिन आप ने मां को चुनरी नहीं चढ़ाया, मैनें कहा कि मुझे श्री हनुमान जी में ही मां के रुप दिखने लगे है इसलिए मै अपनी चुनरी म हनुमान जी को ही चढ़ा दिया। यह दृष्टिदोष है और दृष्टि की ऐसी स्वतंत्रता होनी चाहिए। मुझे तो श्री हनुमान जी में ही भगवान बुद्ध दिखते है और त्रिभुवन दादा भी दिखते है। ‘‘बुद्धिमता वरिष्ठाम’’। मेरे दृष्टिगत में जिस प्रकार मैं मन्दिर में मां को चुनरी चढ़ाता हूं। इससे मुझे सिद्धि मिलती है लेकिन रास्ते में बैठी महिला को चुनरी देता हूं तो इससे मुझे आत्म संतुष्टि एवं आत्मा की शुद्धि होती है।
इसी कड़ी में जब बापू के इस विचार को सुन कर जालान के राधेष्याम जी भक्ति रस के सराबोर में होकर झूमनें लगे फिर बापू ने भी हंसते हुए एक गजल प्रस्तुत कर दी। ‘‘तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नजर ना लगे। देखा ना करों तुम आईना कहीं खुद की नजर ना लगे।’’ पण्डाल में उपस्थित श्रोता भक्तों की चेहरे पर खुषी की लहर उमड़ पड़ी। सभी के चेहरे पर मुस्कान आ गया और सभी तालियों की गड़गड़ाहट करनें लगे, फिर उन्होनें श्री राम के भक्ति को गजल के रुप में प्रस्तुत करते हुए कहा।‘‘ हम तुम्हें क्या सुनायें’’, ‘‘सायें में आसुओं के कोई कैसे मुस्कुराये। नजदीक आते-आते हम दूर हो गये। इन वादियों से कह दो कि हमको ना भूल जाये।’’
परमात्मा ने हम सभी को अनुपम और अनोखा बनाया है हम किसी और के जैसा नहीं बन सकते जैसे तील कभी पहाड़ नहीं बन सकता और पहाड़ कभी तील नहीं बन सकता।
परमात्मा ने हम सभी को अनुपम और अनोखा बनाया है हम किसी और के जैसा नहीं बन सकते जैसे तील कभी पहाड़ नहीं बन सकता और पहाड़ कभी तील नहीं बन सकता।
नृत्य में नकल हो सकती है लेकिल कुकृत्य में नहीं, साधना भी देखा-देखी ना करे यदि आप को तप या साधना करना है तो अपने सभी इन्द्रियो को वस में रखें। इस राम कथा को एक सम्मेलन अथवा मेला ना समझे। इस पृथ्वी के मालिक परमात्मा ‘‘श्री राम’’ हैं। इस राम कथा से विवेक की जागृति होती है। साधना की तीन परिस्थितियां होती है साधक, साधन, सिद्धि तीनों के समानान्तर परिकाष्ठा भाव होने पर ही साधक समृद्धि की अनुभूति कर सकता है लेकिन सिद्धि की प्राप्ती के बाद साधक बिना सिद्धि का प्रचार किए नहीं रह सकता लेकिन अन्तरात्मा के भाव से उत्पन्न होने वाले भाव सिद्धि को कोई दिखावा नहीं कर सकता। वह सिद्धि अजय और अमर होती है। दुर्गा सप्तषती के देव्र्षिषम:- में देवताओं में भगवती की साधना के लिए जो स्तुति प्रस्तुत की है वह शकल प्रकृति के रुप में विद्यमान् उस पराअम्बा भगवती की कृपा मातृछाया प्राप्त कर शक्ति के उत्सर्जन श्रोत प्राप्त कर शकल प्रकृति के शक्ति को प्रदान करने वाला। कलयुग में राम नाम की महिमा अजय और अमर है, जो भक्त अपनी अन्तरात्मा की करुणा के भाव से उस नाम की उपासना करता है वह भय, भाव, भवतरणीय से पार हो जाता है उसे किसी यंत्र,मंत्र, तंत्र की आवष्यकता नहीं है। तुलसीदास जी ने कहा है किः-‘कलयुग केवल नाम अधारा’’, ‘‘मुक्ति पथ पूछा जब गुरु कहा सब मां, बिन मांगे सब पढ़त है लती है मां।’’ मुक्ति पथ पूछा जब गुरु कहा सब मां। मां वह होती है जो सब कुछ बिना कहे समझ जाती है उसे कुछ बताने की आवष्यकता नहीं होती है। भवानी का रुप सौम्य है, हिमवती सौम्य है, गौरी सौम्य है लेकिन काली कुष्माण्डा तारा यह उग्र रुप है। काल और कलियुग मलिन है हम गृहस्त आश्रम वालों को सौम्य रुप की पूजा करनी चाहिए। बलि हमेषा उग्र देवीयों को दी जाती है।।
संगत में संगतकार हरिष भाई, तबला पर पंकज भाई, हारमोनियम पर हाका भाई, बैन्जो पर हितेष भाई मंजिरा पर किर्ती भाई मझिरा पर दिलावर भाई। श्रोतागण में विषेष हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति डी0 के0 सिंह, नगर विधायक पं0 रत्नाकर मिश्र, जिलाधिकारी विमल कुमार दूबे, पुलिस अधिक्षक आशिष तिवारी, भूपत मिश्रा आदि थे। आयोजक श्रोतागणों में विषेष रजनी भाई पाबरी सपरिवार सहित, केषव जालान, कृष्ण कुमार जालान, अखिलेष खेमका, प्रवन्धक ओम प्रकाष त्रिपाठी आदि हजारों की संख्या में लोग उपस्थित रहे। पूूरे पण्डाल में महिला थानाध्यक्ष व महिला पण्डाल प्रभारी सीमा सिंह की सुरक्षा व्यवस्था की खुब चाक चैकस देखने को मिला। वहीं पण्डाल प्रभारी भुवाल सिंह की कार्यो की भी सराहना किया जा रहा है।