धर्म संस्कृति

देश मे इकलौता है विन्ध्यधाम,  जहां त्रिकोण की बनती है संरचना

 ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्ज़ापुर।
             विन्ध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति जगत जननी माता विंध्यवासिनी की महिमा अपरम्पार है। इनके गुणों का बखान देवताओं ने भी किया है। विन्ध्य पर्वत की विशाल श्रृंखला को मां गंगा यही पर न सिर्फ स्पर्श करती है। बल्कि इसी स्थान पर आदि शक्ति ? माता विंध्यवासिनी पूर्ण रूप से विराजमान है। तभी तो औसनस पुराण के विन्ध्य खंड मे वर्णित है कि ‘विन्ध्य क्षेत्रम समम क्षेत्रम नास्ति संपूर्ण ब्रह्मांड गोलोके’।
           देश के अन्य शक्ति पीठों पर माता सती के शरीर के अंश मात्र गिरे है। इसी कारण विन्ध्याचल सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है। इतनी ही नहीं माता यहां अपने तीनों रूप महालक्ष्मी, महाकाली व महासरस्वती के रूपों में तीन कोण पर विराजमान होकर अपने भक्तो को दर्शन देती है। तीनों देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान है। लोगों की मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
माता के त्रिकोण दर्शन व परिक्रमा का विशेष महात्म्य पुराणों में वर्णित किया गया है। ऋषि-मुनियों के लिए यह सिद्धपीठ आदिकाल से सिद्धि पाने के लिए तपस्थली रहा है। देवासुर संग्राम के दौरान ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने माता के दरबार में तपस्या कर वरदान मांगा और विजय श्री प्राप्त की। यूं तो माँ विंध्यवासिनी धाम में हर दिन खास होता है, लेकिन नवरात्र में इसकी महत्ता बढ़ जाती है। चैत्र एवं शारदीय नवरात्र के अवसर पर लाखो भक्तो का हुजूम उमड़ पडता है।  यहां माँ कि पूजा प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी त्रितियम चन्द्रघन्तेति कूश्मान्देती चतुर्थकम, पंचम स्कंद्मंतेती षष्ठं कात्यायनीति च सप्तमं कल्रात्रेती महागौरीति चाष्टमं नवमं सिधिदात्री च नव दुर्ग प्रकीर्तिता के रूप की ही की जाती है।
ऐसी मान्यता है की नवरात्र के दिनों में माँ धरती के निकट आ जाती हैं और अपने भक्तों को सुख शान्ति प्रदान करती है। धर्म नगरी काशी प्रयाग के मध्य स्थित विन्ध्याचल धाम आदि काल से देवी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है।
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