आध्यात्म

नवदुर्गा की स्तुति सिद्धि के लिए नहीं बल्कि आत्म शुद्धि के लिए: मोरारी बापू

नवदुर्गा की स्तुति सिद्धि के लिए नहीं बल्कि आत्म शुद्धि के लिए

ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर।

शारदीय नवरात्रि के तृतीय दिवस शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय सुप्रसिद्ध तथा लोकप्रिय संत मोरारी बापू जी की अमृत कथा को सुनने के लिए 10,000 भक्तों ने उत्साहित एवं प्रफुल्लित के साथ बहुतायत संख्या में अमृतकथा आनंद तीसरे दिन भी जमकर आनंद रस उठाया। बापू के आसन पर बैठते ही श्री राम की सूची करते हुए हनुमान जी को ध्यान लगाते हुए श्रोताओं को व्यास पीठ से प्रणाम करते हुए सभी का अभिवादन किया। दिन बापू ने कहा कि नवदुर्गा की स्तुति सिद्धि के लिए नहीं बल्कि आत्म शुद्धि के लिए करना चाहिए मैं आज इन तीनों महादेवियों के सानिध्य में कथावाचन कर रहा हूं, यह सब मां की अनुकंपा की वजह से है। यंत्र, तंत्र, मंत्र इन का अर्थ मेरे नीजि विचार में तीनो ही साधना सिद्धि है, आपको जो मन करे इसे उस और ले जा सकते हैं। शुद्धि को किसी को दिखाने की जरुरत नहीं होती, मेरे निज वचन नियम सदैव अपवाद होता है तथा तंन्त्र साधना, होने के साथ-साथ अपवाद भी होता है मंत्र साधना कभी कभी तामसी होती है तो कभी राजसी होती है लेकिन श्री राम साधना केवल और केवल गुणी होती है, यह मेरे विचार से इस विषय में सबकी अलग-अलग विचार हो सकते हैं। ड़जिस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण ने शिव शंकर जी बहुत बड़े साधक है जो अपने स्वभाव से जीते हैं इन्हें भी कोई प्रभावित नहीं कर सकता। आज इंसान दूसरों के भाव _भाव को देख कर तुरंत ही प्रभावित हो जा रहा है मैं 24 घंटा अपने स्वभाव से ही जी रहा हूं इसलिए मुझे कोई प्रभावित नहीं कर सकता मैं सब कुछ सुनती और देखता हूं। लेकिन मुझे कोई भी सामग्री प्रभावित नहीं कर सकती प्रभावित तो वही होता है जो दूसरों के प्रभाव में किसी ने मुझसे पूछा कि बापूजी आप तो रहे थे 9 दिन मां को चुनरी चढ़ाएंगे, लेकिन कल आपने मां को चुनरी नहीं चढ़ाया, मैंने कहा कि मुझे श्री हनुमानजी में ही मां के रूप दिखने लगे हैं, इसलिए मैं अपने चुनरी को हनुमान जी को ही चढ़ा दिया।
यह दृष्टि दोष है और दृष्टि दोष की ऐसी स्वतंत्रता होनी चाहिए। मुझे तो श्री हनुमान जी में ही भगवान बुद्ध दिखते हैं और त्रिभुवन दादा भी दिखते हैं।

बुद्धिमता वरिष्ठाम
कहाकि मेरे दृष्टि गमे जिस प्रकार मैं मंदिर में मां को चुनरी चढ़ाता हूं, इससे मुझे सिद्धि मिलती है। लेकिन रास्ते में बैठी महिला को चुनरी देता हूं तो इससे मुझे आत्म संतुष्टि एवं आत्मा के शुद्धि होती है। इसी कड़ी में जब बापू की इस विचार को सुनकर जालान के राधेश्याम जी भक्ति रस के सराबोर मे होकर घूमने लगे फिर बापु ने भी हंसते हुए एक गजल प्रस्तुत कर दी “तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर ना लगे, देखा ना करो तुम आईना कहीं खुद की नजर नगर” इस पर पंडाल मे उपस्थित श्रोता भक्तों के चेहरे पर खुशी के लहर उमड़ पड़ी।

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