हर वर्ष एक ही पुतले का होता है प्रयोग
ब्यूरो रिपोर्ट, मिर्जापुर (अहरौरा)।
इस बार अहरौरा में तेरह दिवसीय रामलीला का आयोजन किया गया। विजय दशमी के दिन रावण का बड़ा पुतला बना। उसके भीतर एक आदमी जा घूसा। उस पुलते को रिक्शा पर सहुवाईन के गोले से लादकर युद्धस्थल सहुवाईन के पोखरे पर लाया गया। वहाँ राम रावण की सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। कुम्भकरण, मेघनाथ जैसे महारथी मारें गये। फिर रावण और राम के बीच युद्ध होने लगा लेकिन रावण का शीश कटने के बाद भी जिंदा हो जा रहा था।रावण के भाई विभीषण ने कहा कि प्रभु, इसकी नाभि में अमृत है, वहाँ मारिये। वहाँ तीर मारते ही रावण मारा गया। लंका का राज्य विभीषण को मिला तो फिर बचे सैनिक जै लंकेश फिर बोलने लगते हैं। प्रतीकात्मक रूप एक अन्य पुतला रावण, मेघनाद और कुम्भकरण का जलाया जाता है मगर मुख्य पुतला रावण का वर्षों से पुनः सहुवाईन के गोले में उसी रिक्शे से वापस आता है। सूत्रों के मुताबिक यह रावण पच्चीस वर्षों से वापस आता है फिर एक वर्ष गोला सहुवाईन में विश्राम करता है जो फिर अगले वर्ष इसी कार्य हेतु काम में लाया जायेगा। जब तक शव को अग्नि नहीं दिया जाता तब तक मृतक संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता है।
ऐसे में यह अहरौरा का रावण जिंदा रहता है और जय लंकेश कहते हुए पीछे पीछे जाने वाले नये लंकेश विभीषण के साथ वापस लौट आते हैं।इस रावण का निर्माण लोहे से किया गया है जिसपर पेटिंग द्वारा रावण का मुख बनाये गये हैं और शरीर का अन्य भाग पतंगी कागजों को चिपकाकर सजाया जाता है। जिसपर रामबाण लगता है तो पन्नियां फट फूट जाती है। इसी क्षतिग्रस्त शरीर में वेदनायुक्त यह पुतला पूरे एक वर्ष विश्राम करती है।