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मोरारी बापू की मानस श्रीदेवी कथा मे श्रद्धालु हुए भाव विभोर, भक्तिरस मे झूमते रहे 

बापू की मानस श्रीदेवी कथा मे श्रद्धालु हुए भाव विभोर, भक्तिरस मे झूमते रहे 

0 विद्या लेना और देना ब्राह्मण का कर्तव्य: मोरारी बापू

0 वेद को भूलना और वेद का विरोध करना सर्वथा निषिद्ध 

विन्ध्याचल के कालीखोह मार्ग पर चलने रहे अंतर्राष्ट्रीय संत मोरारी बापू के दूसरे दिन शुक्रवार की कथा का शुभारंभ श्री हनुमान चालीसा से सुवाचन से किया गया। जिसमें सभी श्रोता भक्त एक साथ एक स्वर में हनुमान चालिसा से पूरा माहौल एकदम हनुमान जी के भक्ति रस में रम गया।  फिर वैदिक मंत्र उच्चारण से एक बार पुनः माहोल एकदम मंत्र मुक्त हो गया। कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि मां परम अंबा तथा मा विंध्यवासिनी व इस विंध्याचल धाम में प्रत्येक स्वरुपों को मेरा प्रणाम तथा उपस्थित श्रोता का स्नेह स्पर्श करते हुए कहा कि विश्व की तमाम स्त्रियां मां के हिस्सों रुकी है। शक्तिपीठ से शक्ति ही प्राप्त होगी, शांति नहीं शक्ति से जटिलता प्राप्त होगा सरलता नहीं। जड़ चेतन तथा सभी स्त्रीयों में माँ का ही रूप व्याप्त है। उन्होंने  कहाकि स्त्री: समस्ता सकला जगता” इसका अर्थ है सारे विश्व की स्त्रीयों की रूप रेखा माँ के ही रूप के और उनके ही शक्ल की है।  विन्ध्य धाम प्राचीन काल से ऊर्जा का केन्द्र रहा है। यहां पर दश महाविद्या का रूप है।

 तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है कि मनुष्य को नदीं के रूप में देखा है। उन्होंने कहा कि या देवी सर्वभूतेषु मानस रुपेण संस्थिता, नम:तस्यै, नमः तस्यै, नमः तस्यै नमो नम:, मानस एक देबी है जो मानस के पास में 10 दिया है मां के पांच रूप है वह पांचो पूरे विश्व में व्याप्त है, पुण्य के लिए उन्होंने कहा कि सहयोग करना एक पुण्य है दया करना भी एक पुण्य है कथा सुनना भी एक पुण्य है। शाकर  मत के अनुसार संसार मे पुण्य देने वाले से पाप हरने वाला महान है, जबकि श्रीरामचरितमानस में मानस श्री देवी मे कहा गया है कि विप्र की चरणों की पूजा करना ही पुण्य कहलाता है।

एक भक्त के अनुसार बापू से कहा गया कि बापूजी राहों की शक्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना कीजिए लेकिन बापू ने भक्त को जवाब दिया कि ब्राम्हण मे पहले से ही सभी शक्तियां निहित होती है। बापू ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति का शरीर श्रमी होना चाहिए, क्योंकि मृत्यु का दूसरा रूप है आलस ,मन जिसका संयम ना हो उसे कठिन साधना नहीं करना चाहिए। यदि कठिन साधना करता है तो अच्छे गुरु के सानिध्य में ही करें,  नहीं तो साधक का चेहरा तामसी दिखने लगता है और वह बीच में ही फंस जाता है। बताजा कि विवेक दो प्रकार के है एक लौकिक दूसरा पारलौकीक।

बताया कि कल जब मैं मां विंध्यवासिनी की दर्शन हेतु मंदिर प्रांगण में गया तो वहां पर घंटों से खड़े भक्त कतार में मां के एक झलक पाने के लिए कड़ी धूप में खड़े होकर इंतजार कर रहे थे अपनी बारी की। लेकिन मुझे क्षण मात्र में ही मां की दीदार हो गया। यह मेरा अविवेक था। अविवेक था।  मां के भूमि की जनता धन्य है जो अपने विवेक को बरकरार रखा। इसी क्रम में भक्ति भावना की धारा को प्रवाहित करते हुए एक शायरी से भक्त भगवान के संबंध की संक्षिप्त व्याख्या करते हुए कहा कि गालिब को जब मदीना भेजा जा रहा था तो उन्होंने कहा कि मैं वहां के नियमों और तरीकों को नहीं जानता।  मै वहां के से जाऊंगा, इस पर उनके शिष्यों ने मदीना जाने के लिए सारी व्यवस्थाएं कर दी,  तो किसी ने पूछा उनसे कि ग़ालिब जी आप तो शायर हैं आपको मदीना जाने पर क्या महसूस हो रहा है, उन्होंने अपने शायरी में जवाब दिया कि” मोहब्बत में दिल आज घबरा रहा है, तसब्बुर हक़ीकत हुआ जा रहा है, यू तो यहां से कोसों दूर है मदीना, लेकिन मदीने का दीदार मुझे यही से हो रहा”।


इस कथन के माध्यम से बापू ने भक्ति की पराकाष्ठा भाव की धारा को प्रवाहित कर भगवान की स्वरुपों का ध्यान भक्तों की आंखों में संचित कर भगवान के स्वरुपों का दर्शन प्राप्ति के अनुभव को बताया। उन्होंने कहा कि पूजा करना, मतलब चंदन टीका लगाना ही नहीं, बलेकिन पूजा का मतलब ब्राह्म के प्रति सम्मान और सेवा है। ब्राम्हणों के लिए बताया कि जो ब्राम्हण वेद भूल जाए या जो वेद का विरोध करें वह ब्राह्मण मरने के बाद एक शोक का विषय बन जाता है, ब्राम्हण का कर्तव्य है विद्या पढ़ना और पढ़ाना, यही ब्राह्मणों का निज धर्म है और उन्होंने कहा कि ब्राह्मणों को पहले दान देना चाहिए फिर लेना चाहिए, बापू ने रामचरितमानस की प्रसंग से मानस श्रीदेवी के अद्भुत मानस व्याख्या करते हुए मानस 10 विद्या के महत्त्व को समझाया मन बुद्धि है जो ने निर्णय लेता है चित यानी मन चंचल है। उन्होंने कहा कि चंचल मन और स्थिर बुद्धि का दाम्पत्ति बन जाए तो विश्व का रुप अनोखा हो जाएगा। मनुष्य को हमेशा तन शुद्धि, मन शुद्धि तथा वचन शुद्धि रखना चाहिए । श्री राम दर्शन व राम भजन ही नव निधि है तथा अष्ट सिद्धि यानी आठ प्रकार के शुद्धि है और सिद्धि मां की उपासना से प्राप्त होती है। “देवी पूजीपति कमल तुम्हारे,सुर नर मुनि सब होई सुखारे”,  मातृ पक्ष के साधक या भक्त जो तीनों लोको में शक्ति की उपासना कर आकाश,पाताल और पृथ्वी की सभी शक्ति उर्जा के श्रोतों को प्राप्त कर, विश्व और जगत के कल्याण हेतु कल्याणकारी भावना से जगत के साधक एक नई दिशा प्रदान कर सकता है। प्रकृति के अंदर माया दो प्रकार के होते हैं। पहला विद्या माया दूसरा अविद्या माया, विद्या माया से जगत की मुक्ति होती है और अविद्या माया स्वतंत्र होती है। भगवान राम ने शक्ति की साधना कर शिव शक्ति के महत्व को पुरुष के पुरुषार्थ शिव के समान तथा शक्ति की स्रोत स्री रुपी भावना से साधना कर साधक या विद्वान शतरूपा रूप में मां काली के अनवरित विभिन्न रुपों की साधना कर साधक वाक्य सिद्धि एवं कुशलपुर्वक प्रवक्ता बन सकता है। कहा कि शस्त्र से कहीं ज्यादा प्रभावशाली शास्त्र होते हैं शस्त्र से हम बारी-बारी अपने शत्रु को परास्त कर सकते हैं लेकिन शास्त्र से हम श्रोताओं के भाव साधक की भावना को परिवर्तित कर संपूर्ण जगत कल्याण कर सकते हैं अहंकार से शरीर कि श्री खत्म हो सकते हैं। भजन गुरु कृपा अविरल धारा को बहाकर कीर्तन को आरंभ करते है। सभी श्रोतागण एक साथ कहने लगे,  हे गुरुदेव तुम्हारी जय जय हो, महादेव तुम्हारी जय जय हो, मां भवानी तुम्हारी जय जय हो, पंडाल में बैठे श्रोताओं ने भजन आनंद की प्राप्ति कर झुमने लगे। पंडाल में बैठे हजारों की संख्या में श्रोताओं ने श्री रामचरितमानस के मानस श्रीदेवी कथावाचन तो सुन भाव विभोर हो गए। कथावाचन के पश्चात 10,000 भक्तों के लिए प्रसाद तथा भोजन एवं फलाहारी की व्यवस्था किया गया है जिसमें भक्त पंक्तिबद्ध होकर प्रसाद ग्रहण करते रहे।

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