धर्म संस्कृति

समदृष्टि का ज्ञान सद्गुरु देते हैं,  जो उनमें विषम दृष्टि रखते हैं उन्हें ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती: नारायणानंद

भास्कर ब्यूरो, मिर्जापुर। 

श्री काशी धर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानन्द तीर्थजी महाराज  सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ एवं पारायण के पावन अवसर पर अमृत वर्षा की।  ग्राम गंगहरा कला में कथा को संबोधित करते हुए महाराज जी ने कहा यह मनुष्य शरीर हमें परलोक सुधारने के लिए मिला है। सभी व्यवहार करते हुये भी ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है सम दृष्टि का ज्ञान सद्गुरु देते हैं और जो उनमें विषम दृष्टि रखते हैं उन्हें ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।जहाँ त्याग है वहाँ हम चाहे जहाँ रहे वहाँ पर किसी प्रकार का दुख नहीं है। “बड़े भाग मानुष तन पावा” महाराज जी ने रामायण के माध्यम से बताया की  कई जन्मों के जब पुण्य उदित होते हैं तब हमें यह मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है।संयोग वियोग सब भ्रमरूपी फन्दे हैं बैर में आनंद नहीं मिलता सच्चा आनंद गुरुकृपा से स्वतः ही प्राप्त हो जाता है गुरु और ईश्वर पर जिनकी श्रद्धा होती है उनको ही कृपा की अनुभूति होती है ऐसा रामायण में कहा गया है “गुरु बिनु भव निधि तरै न कोई” श्रीमद्भागवत में भगवान की अपूर्वता को बताया गया है।

भागवत में जिस सत्य का वर्णन किया गया है उसका वर्णन इन्द्रियों द्वारा नहीं किया जा सकता। महाराज श्री ने कहा ब्रम्हा के द्वारा चार प्रकार की की रचना की गई है और चारो प्रकार की सृष्टि के कल्याण के लिए भगवत धर्म है पृथ्वी सभी प्राणियो को धारण करती है वायु सभी को हवा प्रदान करता है और सूर्य सभी को प्रकाश देता है चाहे वह पापी हो या पुण्यात्मा हो क्योंकि तत्वों का यह धर्म है वह जाति व धर्म का भेदभाव किये बगैर सभी का भरण पोषण करते हैं। महाराज जी ने बताया वेद कहते हैं “चरैवेति-चरैवेति  अर्थात चलते रहो जिनके घरों में वेद के विद्वान “वेदज्ञ” जाते रहे हैं उनका जीवन सुलभ कर देते हैं वेदों के पाठ की जो शैली है वह बहुत ही कठिन है जो बिना गुरु के नही आ सकती। स्वामी जी  ने कहा गुरु के अनुशासन में रहकर जो विद्या ग्रहण की जाती है वह कल्याणकारी होती है और जो शिष्य गुरु में दोष देखने लगते है ऐसे शिष्यो का पतन सुनिश्चित है महाभारत में सकाम कर्मो का निरूपण किया गया है। महाराज जी ने कहा जिसकी जैसी वासना रहती है उसे वैसा ही फल मिलता है अर्थ और भोग में जब व्यक्ति की प्रवृत्ति हो जाती है तो वह जल्दी छूटती नहीं और धर्म को जानने के लिए हमें धर्म का अर्थ जानना पड़ेगा। इससे पूर्व महाराज जी की पादुका पूजन का कार्य गुरुपीठ परम्परा अनुसार सविधि सम्पन्न हुआ। जिसमें समस्त ग्राम वासियो और क्षेत्रवासियों सहित अमरेश चन्द्र दुबे ग्राम प्रधान, जगतनारायण दुबे, रामसिया दुबे,  राम जी दुबे, प्रभाशंकर दुबे, रामनारायण दुबे, विजय दुबे, रामगोपाल दुबे, कृष्ण मुरारी दुबे, जीतनारायन दुबे, प्रह्लाद दुबे, कामेश्वर दुबे आदि ने पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

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