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आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण: अनुप्रिया पटेल

० अनुप्रिया पटेल ने कहा, “एससी-एसटी व ओबीसी के प्रतिनिधित्व को नुक़सान ना पहचे यह सुनिश्चित करे सरकार”  
विमलेश अग्रहरि, मिर्ज़ापुर।
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने आरक्षण के मामले में उच्चतम न्यायालय के ताजा फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए इस पर अपनी असहमति जताई हैं। श्रीमती पटेल ने कहा है कि एससी-एसटी और ओबीसी के संविधान प्रदत आरक्षण के खिलाफ माननीय उच्चतम न्यायालय का दिया गया फैसला दुर्भाग्य पूर्ण  है और वंचित वर्गों के अधिकारों पर इससे भयानक कुठाराघात और कोई भी नहीं हो सकता है।
श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने कहा कि अदालत के  माध्यम से आरक्षण के खिलाफ बार-बार इस तरह के जो फैसले आते हैं, उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि हमारी न्यायपालिका के अंदर एससी-एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व नहीं है। इसलिए मैं अपनी पार्टी अपना दल एस की तरफ से ये मांग कर रही हूं कि एससी-एसटी, ओबीसी का जो प्रतिनिधित्व है, उसे सुनिश्चित किया जाए। उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का तत्काल गठन किया जाए। 
श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने कहा कि संसद के पास ये अधिकार है कि कानून बनाकर ऐसे मामलों का निपटारा करे। वर्ष 2018 में भी एक ऐसी ही परिस्थिति आई, जब एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट में माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा जो बदलाव किया गया था, तब हमारी केंद्र सरकार ने संसद में अध्यादेश लाकर और एक नया कानून बनाकर वंचित वर्गों के अधिकार को संरक्षित करने का कार्य किया था और आज फिर ऐसी भयावह स्थिति खड़ी है। श्रीमती पटेल ने इस मामले में केंद्र सरकार से मांग की है कि इस मामले में त्वरित हस्तक्षेप करे और इस मामले का निपटारा करे, क्योंकि देश का वंचित वर्ग आज हाशिए पर खड़ा है और अपनी चुनी हुई सरकार से ये उम्मीद करता है कि इस तरह के फैसले जो बार-बार कोर्ट द्वारा दिए जाते हैं, सरकार को इसमें सामने आकर वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। 
पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेश पटेल ने बताया कि उनकी नेता श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने सोमवार को इस ज्वलंत एवं गंभीर मामले को संसद के अंदर भी उठाया और मांग की कि केंद्र सरकार इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करे। राजेश पटेल ने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय का यह फैसला, जिसमें कहा गया है कि राज्यों को सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने के लिए कोई नहीं है और प्रमोशन में आरक्षण का दावा करने का उनको अधिकार नहीं है, बेहद ही दुभाग्यपूर्ण है। 
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