रचनाकार : आचार्य महेश चंद्र त्रिपाठी की कलम से
काश!मेरा घर ऐसा होता।
मातृत्व की निर्मल धारा,
सदा प्रवाहित रहती।
आकण्ठ डूबता प्रतिक्षण,
स्नेह नीर की सरिता बहती।।
मैं डुबकी रोज लगा के सोता।काश!मेरा घर ऐसा होता।।
अनुशासन के आकाश तले,
सौहार्द विहंसता मुख मण्डल।
कोई नही पराया अपना,
परहित होता सबका मंगल।
निःस्वार्थ प्रेम में जीवन खोता,काश!मेरा घर ऐसा होता।
कर्तव्य निष्ठ,और धर्म निष्ठ,
अग्रज,अनुज हमारे होते।
सर्वे भवन्तु सुखिनः की वाणी,
वे विपदा में कभी न रोते।
प्रेम पुंज का उपवन होता,काश!मेरा घर ऐसा होता।
माता रहती धर्म परायण,
पिता जी प्रेम नारायण।
।भार्या रहती कर्म परायण,
भगिनी शील परायण।
भाभी सिर लज्जा पल्लू होता, काश!मेरा घर ऐसा होता।
काश!मेरा घर ऐसा होता।
**********समाप्त*********
(रचनाकार विकास खंड पहाड़ी के सिंधोरा ग्राम निवासी है)