0 लहजे बताते हैं कि परवरिश हुई या पाले गए हैं : न्यायाधीश श्री अमित कुमार यादव
मिर्जापुर । विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव न्यायाधीश श्री अमित कुमार यादव ने कहा कि बाजारवाद, भूमंडलीकरण तथा पाश्चात्य संस्कृति की विषैली हवाओं ने भारतीय ऋषियों एवं मनीषियों के उदात्त भावनाओं बुरी तरह प्रभावित किया है। जिसका यह असर है कि 21वीं सदी में संवादों के जरिए ज्ञान-विज्ञान की धारा प्रवाहित करने वाली परंपराएं खंडित हो रही है। संवादों की विकृति ने नए दौर की भाषा को भी प्रभावित किया है।
श्री यादव अज्ञेय सम्मान, हिंदी गौरव, साहित्यभूषण आदि अलंकरणों से विभूषित तथा राष्ट्रीय हिंदी समालोचक डॉ भवदेव पांडेय की 12वीं पुण्यतिथि के अवसर पर नगर के तिवराने टोला स्थिति शोध संस्थान कार्यालय में *’संवाद की परंपरा और भाषा की सभ्यता’* विषय पर गुरुवार, 24 फरवरी को आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। श्री यादव ने कहा कि चारों तरह तनाव और अवसाद के मूल में विकृत संवाद एवं अमर्यादित भाषा होती है। इस संबन्ध में श्री यादव ने महाभारत काल का जिक्र किया और कहा कि द्रौपदी ने ‘अंधे का बेटा अंधा’ नहीं कहा होता तो भारी स्तर पर खून-खराबा नहीं हुआ होता। श्री यादव ने कहा कि इस विनाशकारी भाषा का समाधान श्रीकृष्ण द्वारा अत्यंत सधी और संश्लिष्ट भाषा में अर्जुन को प्रदान किया। जिसे आदर्श ग्रन्थ कहा गया जबकि वे अर्जुन को उपदेश देते समय युद्ध के नगाड़े बज गए थे। वातावरण अत्यंत दूषित था। न्यायाधीश ने कहा श्रीमद्भगवतगीता का यही सन्देश है कि संवाद और भाषा उत्कृष्ट होनी चाहिए। उन्होंने *’लहजे बताते हैं कि परवरिश हुई है या पाले गए हैं’* सूत्र वाक्य का प्रयोग करते हुए संकेत दिया कि संवाद के लिए भाषा इस्तेमाल करने के पहले खूब चिंतन-मनन करना चाहिए।
गोष्ठी में श्रीमती अजिता श्रीवास्तव ने जब अध्यक्षीय भाषण के लिए माइक सम्हाला तब तालियों की गड़गड़ाहट से प्रबुद्ध वर्ग ने उनका इसलिए स्वागत किया क्योंकि इसी वर्ष गणतंत्र दिवस पर उन्हें *’पद्मश्री सम्मान’* से नवाजा गया है। लोकगायिका श्रीमती श्रीवास्तव ने आंचलिक गीतों सार्थक संवाद और भाषिक सभ्यता का पुष्पक विमान कहा तथा लोकगीत सुनाकर उसका उदाहरण भी दिया।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता गीतकार गणेश गंभीर ने विषय की गंभीरता उसकी गहराई, उन्नतता की परिक्रमा व्यापक रूप से की। उन्होंने कहा कि सृष्टि के साथ संवाद का क्रम शुरू हुआ और जैसे जैसे विकास की प्रक्रिया ने दौड़ लगाई, हमारी भाषा सभ्यता की कुलांचे भरने लगी लेकिन डिजिटलीकरण के दौर में सब कुछ गड्डमगड्ड हो गया है। रोबोटयुग का प्रभाव वर्तमान दौर में देखा जा रहा है।
गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि ओबीटी कारपेट कम्पनी के उपाध्यक्ष राजेश कुमार मिश्र ने कहा कि सार्थक संवादों से जटिल से जटिल विषयों को सरल बनाने का दौर अब संवादहीनता के दौर में बदल गया है। घर-परिवार में स्नेहिल सम्बंध धूमिल होते जा रहे हैं। जिसका खामियाजा समाज भुगत रहा है। यही संवादहीनता कल कारखानों तक में पहुंच गई है। श्री मिश्र ने यह निष्कर्ष दिया कि गरीबी और बेरोजगारी का भी कारण सार्थक संवाद न होने के का कारण है। फैक्ट्रियों में हड़ताल प्रबंधन और कर्मचारियों में संवाद की विकृति से होती है।
गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित ज्ञानोदय शिक्षण संस्थान की डायरेक्टर डॉ आशा राय तथा प्रबोधिनी महिला संस्थान की डायरेक्टर श्रीमती नन्दिनी मिश्र दोनों ने समाज को स्वस्थ और समृद्ध बनाने के लिए सम्वादशैली और भाषा के स्तर को उच्चस्तरीय बनाने पर जोर दिया। गीतकार एवं समालोचक श्री अरविन्द अवस्थी ने कहा कि संवाद और भाषा की समृद्धि से समाज सुघटित होता है। इस अवसर पर जीडी बिनानी डिग्री कालेज के प्रोफेसर राजमोहन शर्मा तथा पत्रकार अमरेश मिश्र ने भी विचार व्यक्त किए।
प्रारंभ में सलिल पांडेय ने अतिथियों का स्वागत तथा केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ, लखनऊ के विभागाध्यक्ष डॉ शिशिर पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। गोष्ठी का संचालन ए एस जे इंटर कॉलेज के प्रवक्ता डॉ रमाशंकर शुक्ल ने किया। इस अवसर पर स्वामी अड़गड़ानन्द कृत ‘यथार्थ गीता’ एवं पीडब्ल्यूडी के अधीक्षण अभियंता श्री कन्हैया झा की धर्मपत्नी स्वर्गीया हीरा झा की कविता संकलन ‘कांटों का उपवन’ मुख्य अतिथि सहित विशिष्ट लोगों को प्रदान किया गया।