मिर्जापुर।
जिला विज्ञान क्लब मिर्ज़ापुर द्वारा आयोजित प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस कार्यशाला के दूसरे एवम अंतिम दिन कैसे हो प्लास्टिक बेस्ट का निपटान,प्लास्टिक का दुष्प्रभाव एवम प्लास्टिक का विकल्प आदि पर विशेषग्यो द्वारा जानकारी दी गयी।जिसमे 178 बाल वैज्ञानिक एवम विज्ञान संचारको ने प्रतिभगिता की। जिला विज्ञान क्लब समन्यवक सुशील कुमार पांडेय ने कहा कि आप सभी देखते है कि जहा भी कूड़ा फेका गया होता है उसमें रंग विरंगे प्लास्टिक बैग,टूटी फूटी प्लास्टिक की बोतले दिखाई देती है। जो नान बायो डिग्रेडेबल वस्तुएँ है।ये हमारे पर्यावरण के लिए खतरा बन गया है।
भारत सरकार की अपशिष्ट प्रबंधन नीति के अनुसार प्लास्टिक के कूड़े को लैंडफिल साइट में ही फेकना चाहिए जहा इनके सड़ने में लगभग 1000साल लग जाते है, लेकिन इनसे जो समस्या उतपन्न होती है वो पर्यावरण के लिए और भी खतरनाक है क्योंकि इनके सड़ने की अवस्था मेजो विषैले पदार्थ निकलते है वो मिट्टी में अवशोषित होकर भूजल तक पहुच उसे प्रदूषित करते है। प्लास्टिक पदार्थो को जलाना भी बहुत खतरनाक है क्योंकि इसे जलाने पर जो जहरीली गैस निकलती है उसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, फास्जिन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, डाई ऑक्सिन आदि सम्मलित है परंतु सबसे बड़ी चौकाने वाली बात यह है कि एक किलो प्लास्टिक का कूड़ा जलाने पर 3 किलो कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है जो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण है। डॉक्टर यस वी यादव ने कहा कि आज प्लास्टिक से बने थैले सिर दर्द बन गए है। जिन्हें सभी कूड़ा घरों, नदी, नालो में बहते देख सकते है।इन्ही प्लास्टिक से बने थैलेने जहा तहा ड्रेनेज सिस्टम चोक करके रख दिया है।यही कारण है कि बाढ़ आने पर लोगो के घरों में गन्दा पानी बैक फ्लो करने लगता है। इसके बाद भी हम नही चेतते और धड़ल्ले से इसका प्रयोग करते है।
अंग्रेजी के पांच अक्षर R को 5 बार प्रयोग में लाकर यानी रिड्यूस, रीसायकल, री यूज़, रिकवर, और रिसिदुअल् मैनजमेंट का कड़ाई से पालन करने के लिए अमल कराया जाये तो कूड़े का प्रबंधन हो सकता है। विशेषज्ञ वैज्ञानिक पी के सिंह ने बताया कि उपयोग के दौरान और कचरे के रूप में बच जाने वाला प्लास्टिक इंसानों जानवरो समेत प्रकृति को भी नुकसान पहुच रहा है।जिन डिस्पोजल बर्तनों ,कप प्लेटो में खाने व कोल्ड ड्रिंक चाय आदि पेय पदार्थ मिलते है कुछ समय तक रखे रहने के कारण रासायनिक क्रियाएं होने से खान पान विषैला हो जाता है। शोधों के आधार पर पता चला कि प्लास्टिक से बनी पानी की बोतल यदि कुछ समय तक सूर्य के प्रकाश में रहती है उनमें मौजूद पानी सेवब कैंसर जैसे रोग पैदा करता है।
रसायन विशेषज्ञ के के सिंह ने बताया कि प्लास्टिक से बने लंच बॉक्स,पानी की बोतल और भोजन को गर्म व ताजा रखने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली पतली प्लास्टिक फ़ाइल में 175 से ज्यादा दूषित घटक होते है जो बीमार करने के लिए जिम्मेदार है। विशेषज्ञ डॉक्टर संजय ने बताया कि प्लास्टिक बोतलों में पाए जाने वाला एक खास तत्व थेलेट्स मनुष्य की सेहत पर प्रतिकूल असर डाल रहा है।इसकी वजह सर हार्मोनों का रिसाव करने वाली ग्रन्थियों का क्रिया कलाप विगड़ जाता है।कुछ अध्ययन में थेलेट्स को कैंसर पैदा करने में भी सहायक माना जाता है।
विशेषज्ञ एम के जौहरी ने कहा कि वैज्ञनिकों का मत है कि यदि भोजन गर्म हैतो ऐसे खाने को प्लास्टिक टिफिन में बंद करने पर उसमे दूषित केमिकल चले जाते है जिससे कैंसर और भ्रूड के विकास में बाधा उतपन्नं हो जाती है।
खतरा तो दूध की प्लास्टिक बोतलों से भी है। असल मे प्लास्टिक की बोतल में रासायनिक द्रव्यों की कोडिंग होती है।बोतल में गर्म दूध डालने पर ये रसायन दूध में मिलकर बच्चे को नुकसान पहुचते है।विशेषज्ञ डॉक्टर पी के देव बताया कि प्लास्टिक समस्या न बने अगर उसे आसानी से री साईकल किया जा सके।प्लास्टिक की कुछ किसमें री साईकल की जा सकती हैं। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक अलग अलग तरीके खोज रहे है।कुछ वैज्ञनिकों ने प्लास्टिक कचरे को थ्री डी प्रिंटर में फिलामेंट में बदलने की तकनीकी खोजी। कुछ वैज्ञानिक प्लास्टिक कचरे को कृषि कचरे एवम नैनो पार्टिकल के साथ जोड़कर नया मेटेरियल बनाने के प्रयोग कर रहे है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिको ने गैलेरिया मेनोलेना नामक कीड़े का पता लगाया है जो आमतौर पर मधुमखी का छत्ता खा जाती है पर उसे प्लास्टिक के खिलाफ भी कारगर पाए।
कार्य शाला के अंत मे जिला समन्यवक ने कहा कि प्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सतर्कता एवम जागरूकता दोनों आवश्यक है।हर एक नागरिक का धर्म है ।सभी ने पर्यावरण को संरक्षित करने हेतु प्लास्टिक का प्रयोग न करने की शपथ ली।