0 आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी के अमृत महोत्सव में प्रदेश के सभी मंडल मुख्यालय के जनपदो में 75 – 75 हरि शंकरी की हुई स्थापना
मिर्जापुर।
मिर्जापुर वन प्रभाग के विंढम फॉल रेंज स्थित विंढम पार्क में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मीरजापुर मंडल के मुख्य वन संरक्षक रमेश चंद्र झा एवं प्रभागीय वनाधिकारी पीएस त्रिपाठी के कर कमलों से हरि शंकरी का पौध रोपण कर हरि शंकरी सप्ताह का समापन किया गया।
डीएफओ श्री त्रिपाठी ने बताया कि प्रदेश में 35 करोड़ पौधरोपण महा अभियान के अंर्तगत वृक्षारोपण को जन आंदोलन का स्वरूप देने के लिए वन विभाग युद्ध स्तर पर जुटा और समापन अवसर तक विभिन्न रेंज मे कुल पचहत्तर पौधे रोपण गये।
8 से 15 अगस्त के बीच मनाये जा रहे प्रदेश व्यापी हरिशंकरी वृक्षारोपण सप्ताह का तहत प्रभागीय वनाधिकारी मीरजापुर पीएस त्रिपाठी के निर्देशन में मिर्जापुर वन प्रभाग के समस्त रेंज में हरिशंकरी पौधरोपण वैदिक मंत्रोच्चार एवं पूजा अर्चना के साथ साथ 8 अगस्त को किया गया था। विंध्य क्षेत्र मे अष्टभुजा स्थित विभिन्न आश्रमों में श्री त्रिपाठी ने बतौर मुख्य आतिथि कुल 12 हरीशंकरी पौध की स्थापना उस दिन वैदिक मंत्रोच्चार के बीच की गयी थी। तदुपरान्त जनपद के पटेहरा रेंज, मड़िहान रेंज, सुकृत रेंज के बाद स्वतंत्रता दिवस पर समापन करते हुए विंढम फॉल रेंज मे मुख्य वन संरक्षक एवं डीएफओ द्वारा हरी शंकरी का पौध रोपण किया गया।
प्रभागीय वनाधिकारी ने बताया कि 8 से 15 अगस्त के बीच हरिशंकरी वृक्षारोपण सप्ताह मनाया गया। इस सप्ताह में आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी के अमृत महोत्सव में प्रदेश के सभी मंडल मुख्यालय के जनपद में 75 हरिशंकरी की स्थापना की जानी थी, जिसे पूजा पाठ एवं वैदिक मंत्रोच्चार के बीच संपन्न किया गया।
इस अवसर पर सभी क्षेत्रीय वन अधिकारी एवं वनकर्मियों सहित सैकड़ों की संख्या में पर्यटक उपस्थित रहकर हरि शंकरी पौधरोपण मे सहयोग प्रदान किए।
जाने, क्या है हरि शंकरी पौध का पौराणिक महत्व?
भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता मे अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा है कि ‘वृक्षों में मैं पीपल हूं’ अर्थात पीपल के वृक्ष में सात विष्णु भगवान का वास है। बरगद की छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास माना जाता है। जिस प्रकार पीपल को विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार बरगद को शिव जी का प्रतीक माना जाता है। यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है, इसलिए संतान के इच्छित लोग इसकी विशेष पूजा भी करते हैं। यह बहुत लम्बे समय तक जीवित रहता है, अतः इसे “अक्षयवट” भी कहा जाता है।