मिर्जापुर

शास्त्रीय संगीत संस्कृति की धरोहर है: डा.मधुलिका सिंह

राज्य संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में शास्त्रीय संगीत की सम्भागीय प्रतियोगिता हुई आयोजित

मिर्जा़पुर।

उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख आयाम राज्य संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में पडरी के शिवलोक श्रीनेत महाविद्यालय के सभागार में रविवार को अपराह्न शास्त्रीय संगीत की सम्भागीय प्रतियोगिता आयोजित हुई। कार्यक्रम का शुभारम्भ देवी सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित करने के साथ हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि महाविद्यालय की प्रबन्धक व समाजसेवी डा. मधुलिका सिंह ने कहा कि संगीत कला मानवीय भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है, जो हमें विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से प्राप्त हुई है। भारत आदिकाल से ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता एवं परंपराओं के कारण विश्व पटल पर विशेष पहचान बनाए हुए है। देश में संस्कृति की मुख्य धरोहर शास्त्रीय संगीत ही है।

उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत हमारे शास्त्रों से निकली ताल है। जो कि भारतीय संस्कृति की पहचान है। इसको जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है। सरकार भी शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। शास्त्रीय संगीत से भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है। विशिष्ट अतिथि समरसता विचार मंच के संयोजक शैलेंद्र अग्रहरि ने कहा कि शास्त्रीय संगीत से भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है। संगीत और संस्कृति का संरक्षण आज की जरूरत है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारत में  विविध धर्म, भाषाएं, बोलियां, रीति-रिवाज़ तथा भौगोलिक विभिन्नताएं हैं, बावजूद इसके भी एक अखंड राष्ट्र के रूप में अडिग खड़ा है। संगीत पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। वर्तमान में भारत में बहुत से ऐसे शहर अस्तित्व में आ चुके हैं जिनका भारतीय परंपरा एवं  संस्कृति से कोई वास्ता नहीं है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भारतीय संगीत का संरक्षण बहुत ज़रूरी है। विद्यालय स्तर से बच्चों को संस्कृति से जुड़े विषय पाठ्यक्रम में अनिवार्यता के साथ पढ़ाए जाने चाहिए।

    कार्यक्रम की सम्भागीय संयोजक पूजा केशरी ने कहा कि वैदिक काल में संगीत के सात स्वरों का आविष्कार हो चुका था। भारतीय महाकाव्य रामायण तथा महाभारत की रचना में भी संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली एवं प्रकृति में अत्यधिक परिवर्तन हुआ। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि तानसेन, स्वामी हरिदास, अमीर खुसरो आदि ने संगीत की उन्नति एवं विकास के लिए अत्यधिक योगदान दिया।

वर्तमान में शास्त्रीय की विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं। शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय संगीत के अंतर्गत भारत में ख्याल, ध्रुपद, धमार, चतुरंग, तराना, ठुमरी, दादरा इत्यादि गायन शैलियां प्रचलित हैं। भारतीय संगीत एवं संस्कृति की इस धरोहर के उत्थान एवं संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। आयोजक मण्डल की ओर से अतिथियों का अंगवस्त्र व स्मृति चिन्ह दे कर सम्मान किया गया। उक्त अवसर पर विजयी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किया गया। सम्भाग में बाल, किशोर व युवा वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त अभ्यर्थियों को लखनऊ की प्रांतीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका मिला। जहां गायन बाल वर्ग में ओमकार सिंह प्रथम, प्रतिचि चतुर्वेदी प्रथम, द्वितीय स्थान पर स्वस्ती टंडन रहीं। किशोर वर्ग में हरिप्रिया पाण्डेय प्रथम व निहाल मौर्य द्वितीय रहे।

किशोर वर्ग की खुशनुमा वारसी वाद्य यंत्रवायलीन में प्रथम रहीं। बाल वर्ग तबला में कन्हैया पाण्डेय प्रथम रहे। सभी नवोदितप्रतिभाओं ने  बेहतर प्रस्तुति दी। कलाकारों के बीच कडा़ संघर्ष रहा। इस दौरान डा.संतोष सिंह, नित्यानंद प्रसाद, अकादमी की प्रांतीय प्रतिनिधि लखनऊ से रेनू श्रीवास्तव निर्णायक मंडल के सदस्य भातखंडे विश्वविद्यालय से मंजू मलकानी, सचिन दूबे, अमित श्रीनेत, शंकर चौधरी, हरिहर प्रताप सिंह,पंकज सिंह, श्यामधर चतुर्वेदी, ताराचंद अग्रहरि, आलोक पाण्डेय,आदि रहे।

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