मिर्जापुर।
शनिवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के राजीव गांधी दक्षिणी परिसर में बौद्धिक संपदा अधिकार के संदर्भ में कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सुश्री फरहा बानो, महिला वैज्ञानिक एवं समन्वयक, राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता अभियान, प्रो.आशीष सिंह, डा. आशीष लतारे, डा. अशोक यादव, डा. सना, डा. राजेश कुमार, डा. गिरीश, डा. अभिनव सिंह, डा. विशाल श्रीवास्तव ने मालवीय जी को पुष्पार्पण एव दीप प्रज्वलन करके किया।
कार्यशाला में उपस्थित परिसर के छात्र सलाहकार डा. आशीष लतारे ने मुख्य वक्ता के बारेमे जानकारी देते हुए राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा का महत्व और उसके बारे विद्यार्थियों को ज्ञानार्जन के लिए प्रोत्साहित किया। उपस्थित मुख्य वक्ता ने बताया की व्यक्तियों को उनके बौद्धिक सृजन के परिप्रेक्ष्य में प्रदान किये जाने वाले अधिकार दिये जाने का मूल उद्देश्य मानवीय बौद्धिक सृजनशीलता को प्रोत्साहन देना है।
मनुष्य अपनी बुद्धि से कई तरह के आविष्कार और नई रचनाओं को जन्म देता है। उन विशेष आविष्कारों पर उसका पूरा अधिकार भी है लेकिन उसके इस अधिकार का संरक्षण हमेशा से चिंता का विषय भी रहा है। यदि हम मौलिक रूप से कोई रचना करते हैं और इस रचना का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा गैर कानूनी तरीके से अपने लाभ के लिये प्रयोग किया जाता है तो यह रचनाकार के अधिकारों का स्पष्ट हनन है।
जानकारी देते हुए वक्ता ने बताया की भौगोलिक संकेतक से अभिप्राय उत्पादों पर प्रयुक्त चिह्न से है। इन उत्पादों का विशिष्ट भौगोलिक मूल स्थान होता है और उस मूल स्थान से संबद्ध होने के कारण ही इनमें विशिष्ट गुणवत्ता पाई जाती है। भारत की इस वृद्धि को बनाए रखने के लिये भारत को अपने समग्र बौद्धिक संपदा ढाँचे में परिवर्तनकारी बदलाव लाने की दिशा में अभी और काम करने की आवश्यकता है।
इतना ही नहीं मज़बूत बौद्धिक संपदा मानकों को लगातार लागू करने के लिये गंभीर कदम उठाए जाने की भी ज़रूरत है। सत्र के दौरान विद्यार्थियोंसे प्रश्नोतरी प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया. इस कार्यशाला में 400 छात्र- छात्रओंकी उपस्थिति रही. कार्यक्रम का संचालन तृतीय वर्ष के छात्र देवांश यादव और आदर्श सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डा. अमृतलाल खैरे ने कर कार्यक्रम का समापन किया।