ड्रमंडगंज, मिर्जापुर।
क्षेत्र के बबुरा कलां गांव में आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन मंगलवार को कथावाचक पंडित हरिश्चंद्र मिश्र ने रूक्मिणी विवाह, जरासंध वध श्री कृष्ण सुदामा मित्रता की कथा सुनाई।
कथावाचक ने कहा कि रूक्मिणी विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री थी और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थीं रूक्मिणी का भाई रूक्मी भगवान कृष्ण से शत्रुता रखता था और रूक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था
रूक्मिणी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने संदेश वाहक द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना परिणय संदेश भिजवाया।
श्रीकृष्ण विदर्भ नगरी पहुंचते हैं वहां बारात लेकर आए शिशुपाल और उसके मित्र राजाओं को परास्त कर रूक्मिणी की इच्छा से हरण कर द्वारिकापुरी ले गए और धूमधाम से रूक्मिणी के साथ विवाह किया। कथावाचक ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण जैसा मित्र मिलना बड़े सौभाग्य की बात है। श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता समाज के लिए आदर्श है। सुदामा पत्नी के कहने पर भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गये तो द्वारपाल ने सुदामा को भिक्षुक समझकर द्वार पर रोक दिया सुदामा ने द्वारपाल को बताया कि वह श्रीकृष्ण के मित्र हैं द्वारपाल भगवान कृष्ण के पास पहुंचा और सुदामा के आने की सूचना दी।
श्रीकृष्ण ने जैसे ही द्वारपाल से सुदामा के आने का संदेश पाया राजमहल के द्वार की तरफ नंगे पांव दौड़ पड़े।मित्र सुदामा का अभिवादन कर गले से लगा लिया।मित्र को अपने घर दीन दशा में आया देख भगवान के आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे। सुदामा को बड़े आदर के साथ राजमहल के भीतर ले गए और राजसिंहासन पर बैठाकर उनके चरण धोकर खूब आवभगत की। भगवान कृष्ण और सुदामा जैसा मित्र मिलना आज दुर्लभ है।
कथावाचक ने श्रीमद्भागवत कथा की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि कथा श्रवण करने वाले भक्त परमधाम को प्राप्त होते हैं।भागवत कथा श्रवण करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस दौरान यजमान यज्ञ नारायण समदरिया, आचार्य शिवचरण त्रिपाठी,दयाशंकर मिश्र, यज्ञ प्रसाद दुबे, लवलेश समदरिया, अशोक सिंह, नर्वदा नारायण मिश्र आदि मौजूद रहे।