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अति प्राचीन है सीयूर वाले हनुमानजी व सुमेधाधिश्वर महादेव; यहा आने से भक्तों की मनोकामना होती हैं पूर्ण

विकास चन्द्र अग्रहरि

अहरौरा, मिर्जापुर।

हनुमानजी को संकट मोचन कहा जाता है। हनुमान जी हमें भय से मुक्ति दिलाते हैं। हम सभी लोग यह बात जानते हैं कि हनुमान जी भगवान श्रीराम के बड़े भक्त हैं। श्री हनुमान जी की बुद्धि और पराक्रम के बारे में आपने अवश्य ही सुना होगा। लोग हनुमानजी को बहुत मानते हैं। आपने हनुमानजी के कई मंदिर अपने आसपास देखे होंगे।

हमारे उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के अहरौरा में हनुमानजी की कई सौ वर्षो पुरानी मन्दिर है, यहां पर आने से सौ प्रतिशत मनोकामना पूर्ण होती हैं इसी वजह से आस पास सहित अन्य जनपदों भर में प्रसिद्ध है। आपको बता दे कि हनुमान जी की एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो बेहद खास है।

बता दे की उत्तर प्रदेश के जनपद मीरजापुर के अहरौरा नगर से लगभग 3-4 किलोमीटर दूर हिनौता ग्राम सभा में स्थित पूरब दिशा में नदी किनारे व चारो तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ अति प्राचीन हनुमानजी और सुमेधाधिश्वर महादेव मंदिर स्थित हैं। हनुमान जी का यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यहां पर स्थापित हनुमान जी की मूर्ति काफी अद्भुत है। इस मंदिर में हनुमान जी की खड़ी हुई प्रतिमा अपने आप में बहुत अद्भुत है।हनुमान जी की मूर्ति लगभग 700 वर्ष पुरानी है।

इस मंदिर का इतिहास प्रकृति की गोद बसा हुआ गरई नदी के किनारे तथा चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ सीयूर गांव में स्थित सुमेधाधिश्वर महादेव का अति प्राचीन मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है। इसका उल्लेख चंद्रकांता जैसे शिलान्यास में मिलता है। मंदिर के पास अति प्राचीन हनुमानजी का मन्दिर हैं जो काफी अद्भुत प्राचीन है। शुरु में मंदिर काफी छोटे आकार का था। जन सहयोग से मंदिर का नवनिर्माण कराकर इसे भव्य रूप प्रदान किया गया। इस मंदिर के बगल में माँ भंडारी का मायका और अहरौरा डैम भी हैं।

रामजी पुजारि का कहना है कि सुमेधाधिश्वर महादेव और हनुमानजी के यहां जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ यहां आते हैं हनुमान जी उनकी हर इच्छा पूरी कर देते हैं। मंगलवार और शनिवार को भारी संख्या में भक्त यहां हनुमान जी के दर्शन के लिए जुटते है।

भक्त सुरेंद्र मौर्या ने बताया कि सुमेधाधिश्वर महादेव और हनुमानजी के मंदिर में सच्चे मन से पूजा व दर्शन करने मात्र से सभी की मनोकामना पूर्ण होती हैं और प्रत्येक माह की पहली तारीख पर कीर्तन व भव्य भंडारे का आयोजन किया जाता है। सावन माह में भक्त जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक करने के साथ बेल पत्र, मेवा चढ़ाकर पूजा करते हैं।

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