विमलेश अग्रहरि, मिर्जापुर।
आराध्य प्रभु श्रीराम चंद्र जी ने अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध विन्ध्य क्षेत्र मे ही किया था। मीरजापुर जनपद मे बने रहे दिव्य भव्य मा विन्ध्यवासिनी के विन्ध्य कोरिडोर से कुछ ही दूर राम गया में दशरथ का श्राद्ध प्रभु ने किया था।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गुरु वशिष्ठ के आदेश पर पिता दशरथ और अन्य पितरों की मोक्ष कामना से गया जाते समय भगवान राम ने मीरजापुर में विंध्याचाल धाम से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित शिवपुर गांव में कर्णावती नदी संगम पर (गंगा घाट) पर श्राद्ध किया था।
शायदा इसी लिया इस घाट को राम गया घाट और छोटा गया के नाम से प्रसिद्धी मिली है। ऐसी मान्यता है कि यहां पितरों का तर्पण करने से महान पुण्य फल मिलता है। यह पितरों के मोक्ष की कामनास्थली भी मानी जाती है। बताया जात है कि गया से पहले यहां पिंडदान मीरजापुर के रामगया घाट (श्राद्ध कर्म घाट) से जुड़े कई रहस्य हैं। यह घाट मोक्षदायिनी गंगा और विन्ध्य पर्वत का संधिस्थल भी है। यहां गंगा विन्ध्य पर्वत को सतत स्पर्श करती हैं।
मान्यता के अनुसार लोग गया जाने से पूर्व यहां भी पिंडदान करते हैं। मान्यता यह है कि भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ की सलाह पर पिता राजा दशरथ को मृत्यु लोक से स्वर्ग प्राप्ति के लिए गया के फल्गू नदी पर पिंडदान के लिए अयोध्या से प्रस्थान किया, तो पहला पिंडदान सरयू, दूसरा पिंडदान प्रयाग के भरद्वाज आश्रम, तीसरा विन्ध्यधाम स्थित रामगया घाट, चौथा पिंडदान काशी के पिशाचमोचन को पार कर गया में किया। रामगया घाट पर श्राद्ध करने के बाद भगवान श्री राम ने यहां पर शिवलिंग स्थापित किया, जिसे रामेश्वरम महादेव के नाम से जाना जाता है।
राम गया घाट से कुछ दूरी पर अष्टभुजा मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर कालीखोह में माता सीता ने कुंड खुदवाया था। यहां मातृ नवमी पर महिलाएं श्राद्ध करती हैं। कहा जाता है कि सीताकुंड में स्नान मात्र से मनुष्यों के पापों का नाश हो जाता है। कुंड के समीप ही सीताजी ने भगवान शिव की प्रतिमा की स्थापना की थी, जिस कारण इस मंदिर को सीतेश्वर महादेव मंदिर नाम से भी जाना जाता है। सीता कुंड के पश्चिम दिशा की तरफ भगवान श्रीराम चंद्र ने भी एक कुंड खोदा था, जिसे राम कुंड के नाम से जाना जाता है।