अयोध्या धाम।
अयोध्या पहले कौशल जनपद की राजधानी थी। वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और तीन योजन चौड़ी थी। बाल्मीकि रामायण में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है।
कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान्।
निविष्ट सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान्।।” (रामायण 1/5/5)
अर्थात: सरयू नदी के तट पर संतुष्टजनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा देश था।
अयोध्या नाम नगरी तत्रासीत्लोकविश्रुता।
मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ।। 1-5-6
अर्थात – इसी देश में मनुष्यों के आदि राजा प्रसिद्ध महाराज मनु की बसाई हुई तथा तीनों लोकों में विख्यात अयोध्या नामक एक नगरी थी।
आयता देश च द्वे च योजनानि महापुरी ।
श्रीमती त्रींशि विस्तीर्णा सुविभक्ता महाप्रथा ।11:57
अर्थात नगर की लम्बाई, चौड़ाई और सड़कों के बारे में महर्षि बाल्मीकि लिखते है- यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगर में सुन्दर लम्बी और चौड़ी सड़कें थीं। (1/5/7/)
राजमार्गेण महता सुविभक्तेन शोभिता।
मुक्तपुष्पावकीर्णेन जलसिक्तेन नित्यशः ।।
अर्थात् : बाल्मीकिजी अयोध्या की सड़कों की सफाई और सुन्दरता के बारे में लिखते हैं वह पुरी चारों और फैली हुई बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित थी। सड़कों पर नित्य जल छिड़का जाता था और फूल बिछाए जाते थे। (1/5/8)
तां तु राजा दशरथो महाराष्ट्रविवर्धनः ।
पुरीमावासमयामास दिवं देवपतिर्यथा ।।
अर्थात् : इन्द्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। पुरी में राज्य को
खूब बढ़ाने वाले महाराज दशरथ उसी प्रकार रहते थे। जिस प्रकार स्वर्ग में इन्द्र वास करते हैं।
कपाटतोरणवती सुविभक्तान्तरापणाम् ।
सर्वयन्त्रायुधवतीमुषितां सर्वशिल्पभिः 111/5/10
महर्षि आगे लिखते हैं, इस पूरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार, सुन्दर बाजार और नगरी की रक्षा के लिए चतुर शिल्पियों द्वारा बनाए हुए सब प्रकार के यंत्र और शस्त्र रखे हुए थे। (1/5/10)
सूतमागधसंबाधां श्रीमतीमतुलप्रभाम् ।
उच्चाट्टालध्वजवत्ती शतघ्नीशतसंकुलाम् ||1/5/11
अर्थात् उसमें सूत, मागध, बंदीजन भी रहते थे, वहां के निवासी अतुल धन सम्पन्न थे, उसमें बड़ी-बड़ी ऊँची अटारियों वाले मकान जो ध्वजा-पताकाओं से शोभित थे और परकोटे की दीवालों पर सैकड़ों तोपें चढ़ी हुई थी। (1/5/11)
महर्षि बाल्मीकि लिखते है स्त्रियों की नाट्यसमितियों की भी यहां कमी नहीं है और सर्वत्र जगह-जगह उद्यान निर्मित थे। आम के बाग नगरी की शोभा बढ़ाते थे। नगर के चारों ओर साखुओं के लम्बे-लम्बे वृक्ष लगे हुए ऐसे जान पड़ते थे, मानो अयोध्यारूपिणी स्त्री करधनी पहने हो, यह नगरी दुर्गम किले और खाई से युक्त थी तथा उसे किसी प्रकार भी शत्रुजन अपने हाथ नहीं लगा सकते थे। हाथी घोड़े, बैल, ऊंट, खच्चर सभी जगह-जगह दिखाई पड़ते थे।
राजभवनों का रंग सुनहला था। विमानगृह जहां देखो वहां दिखाई पड़ते थे। उसमें चौरस भूमि पर बड़े मजबूत और सघन मकान अर्थात बडी सघन बस्ती थी। कुओं म गन्ने के रस जैसा मीठा जल भरा हुआ था। नगाड़े मृदंग, वीणा, पनस आदि बाजों की ध्वनि से नगरी सदा प्रतिध्यनित हुआ करती थी। पृथ्वी तल पर तो इसको टक्कर की दूसरी नगरी थी ही नहीं। उस उत्तमपुरी में गरीब यानी धनहीन तो कोई था ही नहीं, चलिक कम धन वाला भी कोई न था। वहां जितने कुटुम्ब बसते थे, उन सबके पास धन-धान्य गाय, बैल और घोड़े थे।