दिव्यांगता को कभी भी ज्ञान तथा उत्कृष्टता प्राप्त करने के मार्ग में अवरोध नहीं समझा गया: डा शिशिर
0 ‘दिव्यांगजन एवं हमारा प्रयास’ विषयक संगोष्ठी संपन्न
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मिर्जापुर।
जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. शिशिर पांडेय ने ऋषि अष्टावक्र और स्वामी रामभद्राचार्य का जिक्र करते हुए कहाकि भारतीय संस्कृति और परंपरा में दिव्यांगता को कभी भी ज्ञान तथा उत्कृष्टता प्राप्त करने के मार्ग में अवरोध नहीं समझा गया है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां दिव्यांगजनों ने अपने अदम्य साहस, प्रतिभा और संकल्प के बल पर अनेक क्षेत्रों में प्रभावशाली उपलब्धियां अर्जित की हैं। यदि उन्हें सही माहौल में पर्याप्त अवसर दिए जाएं तो वे हर क्षेत्र में और अधिक निखरेंगे।
सक्षम संगठन काशी प्रांत एवं पूर्वांचल विकास संस्थान की ओर से नगर के भरूहना स्थित जीडी बिनानी पीजी काॅलेज के सभागार में बुधवार को आयोजित ‘दिव्यांगजन एवं हमारा प्रयास’ विषयक संगोष्ठी में उन्होंने बतौर मुख्य अतिथि उक्त बातें कही। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. वीना देवी सिंह ने की।
मुख्य अतिथि डाॅ. शिशिर ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य ऐसे संत हैं, जिनके अकेले ज्ञान पर दुनिया की कई यूनिवर्सिटीज स्टडी कर सकती है। बचपन से ही भौतिक नेत्र न होने के बावजूद आपके प्रज्ञा चक्षु इतने विकसित हैं कि आपको पूरे वेद-वेदांग कंठस्थ हैं। आप सैकड़ों ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। भारतीय ज्ञान और दर्शन में प्रस्थानत्रयी को बड़े-बड़े विद्वानों के लिए भी कठिन माना जाता है। जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य उनका भी भाष्य आधुनिक भाषा में लिख चुके हैं। इस स्तर का ज्ञान, ऐसी मेधा व्यक्तिगत नहीं होती। ये मेधा पूरे राष्ट्र की धरोहर होती है। इसके लिए मोदी सरकार ने स्वामी को पद्मविभूषण से सम्मानित भी किया है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना दिव्यांग व्यक्तियों को उच्च और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई थी। भारत में लगभग नौ करोड़ विकलांग हैं। उच्च शिक्षा का परिदृश्य काफी गंभीर है। दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उच्च शिक्षा केंद्र में उपलब्ध सामाजिक आर्थिक स्थिति और सुविधाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में बड़ी बाधा माना जाता है। पद्म विभूषित जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने 26 जुलाई 2001 में अपनी श्रीराम कथा से प्राप्त धनराशि से विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश सरकार और केन्द्रीय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त कर खोला था। इसमें मौजूदा समय पर करीब 2000 दिव्यांग छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। दिव्यांगों के लिए ब्रेल लिपि की पढ़ाई होती है। यहां पर दूरस्थ शिक्षा की व्यवस्था है। इसके साथ ही संस्कृत व कंप्यूटर विषय अनिवार्य किया गया है। यहां पर पीएचडी की सभी कक्षाएं संचालित हैं। विश्वविद्यालीय में दिव्यांग छात्रों के लिए नि:शुल्क भोजन, छात्रावास, अल्प शुल्क में शैक्षिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।
समदृष्टि, क्षमता विकास एवं अनुसंधान मंडल (सक्षम) के राष्ट्रीय सचिव डाॅ. कमलाकांत पांडेय ने बताया कि सक्षम एक धर्मार्थ राष्ट्रीय संगठन है। इसका मुख्य कार्यालय नागपुर, महाराष्ट्र में है। सक्षम की स्थापना विभिन्न विकलांगताओं वाले सभी व्यक्तियों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से की गई थी। सक्षम का मानना है कि विकलांग लोग समाज पर बोझ नहीं बल्कि देश की संपत्ति हैं। यद्यपि सक्षम वर्तमान में दृष्टिबाधित लोगों की सेवा के लिए समर्पित है। सक्षम की विभिन्न विकलांगताओं वाले सभी व्यक्तियों के साथ समाज को मजबूत करने के लिए पर्यावरण, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक गतिविधियों के प्रति भी प्रतिबद्धता है। गोष्ठी को डा. नीरज त्रिपाठी, यशोवर्धन त्रिपाठी, विकास राय, डा. अशोक सिंह आदि ने सम्बोधित किया। इसके पूर्व कमला आर्य कन्या महाविद्यालय की छात्राओं ने सरस्वती वंदना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम संयोजक पूर्वांचल विकास संस्थान के सचिव सुभाष सिंह रहे। इस दौरान डाॅ. उमेश सिंह, कमला आर्यकन्या महाविद्यालय की प्राचार्य डाॅ. प्रीती जायसवाल, डाॅ. ऋषभ कुमार, डाॅ. प्रांकुर आनंद, गुरूप्रसाद ओझा, डाॅ. संजय कुमार पांडेय, विंध्यवासिनी महाविद्यालय के प्राचार्य प्रवीण कुमार सेठी, बीटीसी के विद्यार्थी शिक्षक छात्र, कमला आर्य कन्या महिला महाविद्यालय संगीत विभाग के शिक्षक एवं छात्राएं केपी पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ अशोक सिंह एवं शिक्षक गण बीएड विभाग के विद्यार्थी तथा नगर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक राजेंद्र प्रथम, मां बाली राजी संस्थान से केशराज सिंह, संजय जयसवाल एवं दिव्यांगजन सहित संभ्रांत नागरिक उपस्थित रहे।