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संघ स्थापना दिवस: शस्त्र पूजन कर स्वयंसेवको ने नगर मे किया पथ संचलन; राष्ट्र के सर्वांगीण उन्नति के लिए स्व का बोध, स्वदेशी भाव, सदाचरण और सद्व्यवहार आवश्यक: संतोष जी

0 राम का वनवास माता पिता के वचन आदेश का पालन ही नही, बल्कि लोक कल्याण रहा
0 99 वर्षो की यात्रा को समझना है कि हम कहां थे, कहां पहुचे और कहां तक जाना है
मिर्जापुर।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 99वे स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य मे मिर्जापुर नगर के लायंस स्कूल के मैदान मे आरएसएस का स्थापना दिवस धूमधाम से शनिवार को प्रात: मनाया गया। शस्त्र पूजन के साथ स्वयंसेवकों ने घोष वादन करते हुए नगर मे पथ संचलन किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त शारीरिक शिक्षण प्रमुख संतोष जी का पाथेय प्राप्त हुआ।

कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य वक्ता संतोष जी, विभाग संघचालक एडवोकेट तिलकधारी जी एवं नगर संघचालक अशोक सोनी जी ने संघ संस्थापक डा हेडगेवार, गुरू जी के चित्र के समक्ष पुष्पार्चन और प्रभु श्रीराम एवं उनके चित्र के समक्ष रखे शस्त्र का पूजन करके किया। इसके पूर्व सुभाषित हुआ एवं नगर प्रचारक राजेंद्र प्रथम द्वारा एकल गीत ‘ध्येय मंदिर का शिखर दिखने लगा है, पग बढाएं’ प्रस्तुत किया। नगर कार्यवाह लखन जी ने मंच परिचय कराया।

मुख्य वक्ता प्रान्त शारीरिक शिक्षण प्रमुख संतोष जी ने कहा कि आरएसएस की स्थापना का लक्ष्य कुछ प्राप्त करना नहीं, बल्कि स्व का जागरण कर समुन्नत राष्ट्र बनाना था। कहाकि संघ के स्वयंसेवक नमक आन्दोलन के समय जनगण सत्याग्रह किये और जेल गये। 1940 आते आते देशव्यापी अपना संगठन हुआ और लंबे संघर्ष के बाद 1947 मे राष्ट्र स्वतंत्र हुआ। विचार हुआ कि लंबा संघर्ष करने के बाद प्राप्त स्वतंत्रता चीर स्थाई कैसे बनी रहे। आज स्वतंत्रता मे स्व का बोध राष्ट्र वासियो मे कही न कही क्षीण हुआ है।

भूमि: माता पुत्रोऽहम पृथिव्या:…अर्थात भारत माता का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है। जब तक ऐसा भाव लोगो मे रहा तब तक भारत सोने की चिड़िया और विश्वगुरु था। पूरे दुनिया मे भारत की संस्कृति सभ्यता और जीवन मूल्य की मान्यता थी। आर्थिक रूप से दुनिया मे भारत 24 प्रतिशत सशक्त था। शिक्षा के क्षेत्र मे नालंदा तक्ष शिला जैसे 84 विश्विद्यालयो मे दस दस हजार विद्यार्थी रहकर पढते थे। हर क्षेत्र मे जो स्व की क्षीणता हुई है। श्रेष्ठ जीवन मूल्य पुन: प्रवाहित करने और स्व के बोध के लिए आरएसएस की यात्रा चल रही है।

उन्होने कहाकि दुनिया मे कई राष्ट्र खडे हुए, पतन हुआ और वहा की संस्कृति समाप्त हो गयी। लेकिन अपना भारत जीवन मूल्यो के साथ आज भी खड़ा है, इसके पीछे महापुरुषो का संघर्ष है। राष्ट्र के सर्वांगीण उन्नति के लिए स्व का बोध, स्वदेशी भाव, आचरण, व्यवहार, कर्म श्रेष्ठ परंपरा के लिए कृणवंतो विश्वमार्यम का भाव सबके मन मे होना चाहिए। खुद को स्थापित करने का संघर्ष चल रहा है, लेकिन सबका ध्यान भारत पर है। क्योकि हमारे पास जीवन मूल्य है। सर्वे भवन्तु सुखिन:, अयं निज: परो वेति भाव का जागरण संघ संस्थापको का चिंतन रहा है।

संघ के शैशवकाल मे ही पहला प्रतिबंध लगा, लेकिन मानवता को श्रेष्ठ बनाने के संकल्प के साथ निरंतर आगे बढते हुए ‘दसो दिशाओ मे जाएं दल बादल से छा जाएं’ के भाव से आज 42 आनुषंगिक संगठन के साथ दुनिया का सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन खडा है और आज समाज जीवन मे ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहा स्वयंसेवक न हों।

उन्होने कहाकि कभी हमे विदेशों से आयात करनी पडती थी, लेकिन आज हम आत्मनिर्भर है। वैश्विक महामारी नहीं है। पूरे दूनिया को मुफ्त दवाइया दी और सहयोग किया। आवश्यकता है अंतिम पायदान के व्यक्ति को सारी सुविधा मिले, जब वह मुख्यधारा से जुडेगा तब राष्ट्र समुन्नत होगा। हम परं वैभव की ओर बढ रहे हैं, लेकिन दुनिया मे वैचारिक और शब्द संघर्ष चल रहा है। कई ताकते वैमनस्य और धर्मान्तरण पैदा कर रही है। इन बिन्दुओ के साथ ही 99 वर्षो की यात्रा को देखना समझना है कि हम कहां थे, कहां पहुचे हैं और कहा तक जाना है।

संपूर्ण समाज अपना है और समता-बंधुत्व का जागरण होना आवश्यक है। श्रीराम के 14 वर्षो का बनवास केवल माता पिता के वचन आदेश का पालन ही नही, बल्कि लोक कल्याण है। अंत मे प्रभु ने अधर्म को धर्म से पराजित किया।
उन्होने कहाकि आरएसएस समाज की आवश्यकता है, संघ के स्वयंसेवक आपदा विपदा के समय निस्वार्थ भाव से खडे मिलते है। समाज हमसे अपेक्षा रखता है इसलिए हमारी साधना बढ़नी चाहिए। आरएसएस निचले पायदान तक पहुंच चुका है। अब स्थायित्व और दृढिकरण की आवश्यकता है।

संतोष जी ने कहाकि कुटुंब प्रबोधन, नागरिक कर्तव्य, समता और ममता के भाव का जागरण भारत के साथ साथ दुनिया मे स्थापित हो। अध्यापक है तो भविष्य के लिए चंद्रगुप्त खडा करें। राष्ट्र संकट मे हो तो धन का क्या काम? भामाशाह जैसा बनना होगा। सामाजिक समरसता आवश्यकता नही आचरण है। हिन्दू समाज को इसे आत्मसात करना होगा। कहाकि हिन्दू मतलब देश मे रहने वाला 130 करोड जनसंख्या जो पूजा पद्धति से अलग हो सकता है लेकिन वास्तव मे वह सब हिन्दू है, जो भारत मा की वंदना करना शुरू कर दे।

बौद्धिक के उपरान्त पूर्ण गणवेशधारी स्वयंसेवक भारी संख्या मे पथ संचलन मे निकले और पूर्व निर्धारित मार्ग से नगर भ्रमण किये।
इस अवसर पर प्रान्त सामाजिक सद्भाव प्रमुख शिवमूर्ति जी, विभाग प्रचारक प्रतोष जी, जिला प्रचारक विक्रांत जी, धर्मराज जी, जिला संघचालक शरद चन्द्र उपाध्याय जी, नगर प्रचारक राजेंद्र जी प्रथम, सोहन लाल श्रीमाली, मनोज जायसवाल जी, इंजीनियर विवेक बरनवाल जी, केशव तिवारी जी, वीरेंद्र मौर्य जी, कवि सिंह जी, गुंजन जी, शैलेष जायसवाल जी, रितेश जी, अखिलेश जी, विनोद जी, विमलेश जी, सुनील जी, प्रदीप जी, अनिल जी, अखिलेश अग्रहरि जी, रामकृष्ण जी, सहित भारी संख्या मे संघ के स्वयंसेवक मौजूद रहे।

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