0 कुत्सित मानसिकता व अराजकतत्वों से मुक्ति के लिए हर हिन्दू को रविदास की भूमिका में आना पड़ेगा
0 संत रविदास से प्रभावित होकर शासक सिकंदर लोदी भी बन गया था उनका शिष्य
मिर्जापुर।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मिर्जापुर के तत्वावधान में नगर के दुर्गा बाजार स्थित संघ कार्यालय केशव धाम के सभागार में संतशिरोमणि रविदास जयंती बुधवार को प्रात: काल मनाई गई। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य वक्ता विन्ध्याचल विभाग के विभाग कार्यवाह सच्चिदानंद एवं नगर संघचालक अशोक सोनी द्वारा संत रविदास जी के चित्र के समक्ष पुष्पार्चन कर किया गया।
विभाग कार्यवाह सच्चिदानंद ने अपने उद्बोधन मे संत परंपरा के वाहक, द्योतक, उपासक, संत शिरोमणि रविदास जयंती के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामना व्यक्त करते हुए कहाकि यह देश परंपराओं से भरा पड़ा है। दुनिया के अंदर इसकी श्रेष्ठता और महानता का कारण है। अलग-अलग कारणों से इस देश की महानता की चर्चा होती है। संपूर्ण दुनिया के अंदर देश की प्रतिष्ठा, स्वीकार्यता देश को उन्नत शीर्ष पर ले जाने, पहुचाने का कार्य देश के संतो मनीषियों महापुरुषों ने किया है। अपनी परंपराओं से जुड़ने के साथ-साथ महापुरुषों ने अपने लिए और अपनों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए और देश के उद्धार के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। विकट परिस्थितियों में समाज के सामने चुनौती, सनातन धर्म के काम में संकट के दौरान उस कालखंड में ईश्वर शक्ति के रूप में संत रविदास जी का प्राकट्य हुआ।
। जब सामाजिक विषमता चरम पर थी, छुआछूत का स्थान उच्च शिखर पर था। समाज में कटुता और विषमता के कारण मानवता अट्टहास कर रही थी। उस करुण क्रंदन को दूर कर मानवीय संवेदनाओ के समानताओं के लिए नारायण को नर रूप में आना पड़ता है। हर व्यक्ति को कहीं ना कहीं जन्म लेना पड़ता है। जन्म किस कुल खानदान में होगा। यह हम निर्धारित नहीं करते, बल्कि व्यक्ति कर्म के आधार पर शिखर को चूम लेता है। कहाकि जाति के आधार पर देश में कोई महान नहीं हो सकता, श्रेष्ठ परंपरा जाति में जन्म लेकर नहीं, बल्कि उसके लिए कर्म करने पड़ते हैं, कर्म के आधार पर ही व्यक्ति की महानता परिलक्षित होती है।
उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि का जन्म 1398 एवं देहावसान 1520 में काशी मे हुआ था। रामानंद उनके गुरु थे और रविवार को जन्म लेने के कारण इनका नाम रविदास पड़ा। शुद्ध शाकाहारी जीवन जीने वाले रविदास ने आजीवन कर्म का तिरस्कार नहीं किया, बल्कि दृढ़ता, तल्लीनता के साथ अपने कर्म को करते हुए हर क्षण बुराई दूर करने का प्रयत्न करते रहे। एक तरफ परिवार चलाने, तो दूसरी तरफ चुनौतियों का सामना भी करना था। इन सबके बावजूद गंगा मैया के प्रति अटूट श्रद्धा थी। गंगा मैया ने आशीर्वाद दिया था कि जिस क्षण परिस्थिति में पुकारोगे उपस्थित रहूंगी और हर असंभव कार्य को करूंगी। गंगा मैया के प्रति समर्पण के बावजूद कर्म की प्रधानता के कारण रविदास रोज गंगा स्नान नहीं कर पाते थे, अपना कार्य करते हुए समाज के लिए कार्य करने वाले के लिए भगवान भी खड़े रहते हैं।
बताया कि एक बार गंगा स्नान करने व्यस्तताओं के कारण जब रविदास नहीं जा सके, तो एक ब्राह्मण से सुपारी भेज दिया और कहा कि गंगा में मेरी सुपारी मां के हाथ में दे देना और इस आवाहन के साथ कि तुम्हारे भक्त रविदास ने इसे भेजा है। गंगा स्नान को गया ब्राह्मण मां गंगा का आह्वान कर बताया कि रविदास ने उससे मां के लिए सुपारी भेजी है, तो मां गंगा का हाथ बाहर निकला मां ने सुपारी प्राप्त किया और एक अलौकिक सोने का कंगन रविदास को देने के लिए दे दिया, लेकिन ब्राह्मण के मन में लालच आ गई और वह उस समय काशी नरेश राजा रघुराज प्रताप सिंह के पास कंगन लेकर चले गए। सोने का कंगन देखकर काशी नरेश ने रानी की अपेक्षा पर दूसरे हाथ का कंगन मांगा, लेकिन ब्राह्मण ने दे पाने मे असमर्थता जताई। इस पर काशी नरेश ने कहा कि 3 दिन के अंदर दूसरे हाथ का कंगन नहीं दिया, तो तुम्हें सपरिवार मृत्युदंड मिलेगा। ऐसे में ब्राह्मण ने रविदास को प्रणाम कर सारी बात बताई। ब्राह्मण के रक्षार्थ संत रविदास ने कटौती में से मां गंगा का आवाहन कर उन्हें प्रकट किया, तो मां गंगा ने दूसरे हाथ का कंगन भी दिया और अंतर्ध्यान हो गई। यह जानकारी होते ही काशी नरेश भेष बदलकर रविदास के पास पहुंचे तो दिव्य दृष्ट रविदास ने उन्हें पहचान लिया।
उन्न्होंने कहा कि संत रविदास शरीर की शुद्धता के लिए नहीं, बल्कि मन की शुद्धता के लिए प्रेरणा देते थे। इसके संबंध में तमाम अनछुए प्रश्न और कहानियां है। रविदास के कालखंड में शासन कर रहे सिकंदर लोदी ने फरमान भिजवाया और उन्हें दिल्ली बुलाया। कहा कि इस्लाम कबूल कर लो, नहीं तो मौत के घाट उतार दिए जाओगे। रविदास ने कहा- हिंदू धर्म नहीं छोड़ सकता, इस्लाम पोखरा और हिंदू धर्म गंगा है। गंगा को छोड़कर पोखरा नहीं जाएंगे यानी संत रविदास ने इस्लाम को पोखरे की संज्ञा दी। नाराज होकर सिकंदर लोदी ने रविदास को कारावास में बंद कर दिया लेकिन जब वह नमाज पढ़ता, तो लोदी को हर तरफ रविदास ही रविदास दिखाई देता यह करिश्मा देखकर लोदी ने रविदास को मुक्त कर दिया। धर्म परिवर्तन कराने के लिए सिर्फ लोदी ने एक फकीर को रविदास के पास भेजा, लेकिन परिवर्तन कराने की बजाय फकीर ने खुद हिंदू धर्म को अपना लिया और अंत में सिकंदर लोदी ने भी संत रविदास को गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया था।
उन्होंने कहाकि मानव जीवन के नैतिक मूल्यो के स्थापना के लिए समाज मे भेदभाव और वैमनस्यता नही होनी चाहिए। विवेकानंद, गुरुनानक, कबीर, सूर, तुलसी सभी ने कालखंड मे सनातन की रक्षा सनातन की सुरक्षा के लिए काम किया। उन्होने कहाकि महापुरुषो ने हिन्दू समाज को एक करने के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, लेकिन आज हिन्दू समाज को बांटने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।
विभाग कार्यवाह ने आह्वान किया कि ऐसी कुत्सित मानसिकता और अराजक तत्वों को देखकर संत रविदास की भूमिका में आना पड़ेगा। माताओं को दुर्गा लक्ष्मी और काली का रूप लेकर विघटनकारी शक्तियों को पुष्पवित व पल्लवित होने से रोकना होगा।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से नगर पालिका मिर्जापुर के पूर्व अध्यक्ष मनोज जायसवाल, विभाग धर्म जागरण प्रमुख वीरेंद्र मौर्य, जिला बौद्धिक प्रमुख गुंजन चौधरी, जिला धर्म जागरण प्रमुख इन्द्रजीत शुक्ल, सह जिला व्यवस्था प्रमुख श्याम जी, सह नगर कार्यवाह रितेश, शारीरिक प्रमुख अखिलेश, व्यवस्था प्रमुख एडवोकेट विनोद कुमार, प्रचार प्रमुख विमलेश अग्रहरि, सौरभ शाह, बालाजी, रामकृष्ण, सोनू दीक्षित, राजेश शाह, जगदीश सिंह, हिमांशु अग्रहरि सहित भारी संख्या मे संघ के स्वयंसेवक मौजूद रहे।