विमलेश अग्रहरि, मिर्जापुर @ विंध्य यूज़
स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज ने कहाकि जिसमें योगी लोग रमण करते हैं, उसी का नाम है राम। योगी अनुभव में रमण करते हैं। अनुभव भव से अतीत की एक जागृति है। यह बातें स्वामी जी ने मंगलवार को क्षेत्र के जयकर कला गांव में स्थित परमहंस आश्रम पर प्रवचन में कहीं।
स्वामी जी ने मनुष्यों को भगवान का सर्व प्रिय जीव बताते हुए कहा कि “सब मोहि प्रिय सब मम उपजाए, सबते अधिक मनुज मोहि भाए “••• भगवान ने सबको उपजाया परंतु मनुष्य सबसे प्रिय लगते है। जीवन में योगी के रूप में भगवान श्रीराम के आदशरें पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिसके द्वारा परमात्मा के निर्देश प्राप्त होते हैं, वही राम हैं जो पहले संचालक, पथ प्रदर्शक के रूप में आते हैं। विवेक रूपी लक्ष्मण, भाव रूपी भरत सभी एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रारम्भ में संकेत इष्ट का निर्देश बहुत संक्षिप्त रहता है।
राम बालक होते हैं। किन्तु निज स्वरूप का दिग्दर्शन जन्म योग से ही होता है। योग से रूप की अनुभूति होती है। इसलिए वह जनक है। एक मात्र योग से ही अनन्त आत्माओं ने अपना स्वरूप पाया है। भविष्य में भी योग ही माध्यम है।
योग का आश्रय पाकर राम शक्ति से संयुक्त हो जाते है। आसुरी प्रवृत्तियों का शमन कर सर्वव्यापक हो जाते हैं। फिर रामराज की स्थिति चराचर पर छा जाती है। योग का प्रभाव पड़ते ही अनुभव जागृत हो उठते हैं। अनुभव रूप राम शक्ति रूपी सीता से संयुक्त हो जाते हैं। यह योग की प्रवेशिका है। स्वामी अड़गड़ानंद महराज अपने लय में भजन सुनाते हुए कहा कि ” आस्था का घियना सनेहिया की बाती, दर्द क दियना जलती दिन राति” उन्होने गीता को सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ बताया और यथार्थ गीता का अपने प्रवचन में दर्शन कराया। इसअ पर तुलसी बाबा, राकेश बाबा , वरिष्ठ नंद जी, लाले बाबा, सोहन महराज, कृष्णानंद बाबा, राजाराम महराज, तानसेन बाबा, आशीष बाबा सहित स्थानीय भक्त उपस्थित रहे। आश्रम पर आयोजित भंडारे में भारी संख्या में श्रधालुओ ने प्रसाद ग्रहण किया।