अभिव्यक्ति

आचार्य महेश चंद्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘मानव और कोरोना का वाचिक द्वंद’ कविता अवश्य पढ़ें

रचनाकार: आचार्य महेश चंद्र त्रिपाठी

चीन देश में जन्म लिये तुम,

विश्व भ्रमण कर रहे आज ।

जन्म दिया जिन बीरों ने,
उनको दे डाले सकल ताज ।1।
नर संहार का व्रत ले रखे,
आखिर बोलो किस कारण से ।
त्राहि त्राहि जन मानस करता,
जहरीले वाणो के मारण से ।2।
बाल बृद्ध के चीत्कारों से,
धरती थर थर कॉप रही है ।
नर नारी सब भयाक्रांत,
माया ममता को माप रही है।3।
अश्वनी कुमारों का वंशज,
धैर्य खो रहा ,बौन बना ।
उनका पुरुषार्थ सिथिलता का,
पाठ पढ़ रहा, मौन बना 4।
“कोरोना”तेरे अट्टहास से,
विश्व चतुर्दिक कॉप रहा है ।
तेरे विनाश लीला के पद,
अवनी, अम्बर को नाप रहा है।5।
ममता करुणा की दयादृष्टि ,
क्या तुम्हें विधाता नही दिया ।
मानव प्रजाति के प्रति ज्वाला,
क्या पवन बेव ने जला दिया ।6।
आज घरों में ले समाधि ,
सब ध्यान लगाये ईश्वर का ।
जीवन की भिक्षा माँग रहे है,
गुणगान करें सर्वेश्वर का ।7।
सैन्य दृष्टि से तुम ओझल ,
असीम शक्ति के स्वामी हो ।
जिस पर तुम कर दो कृपादृष्टि,
वह यम पथ का अनुगामी हो ।8
तेरी विभीषिका के सम्मुख,
मनुजता मूक बधिर से है ।
धरती कण कण है विषाक्त,
नदियोँ का जल रुधिर से है ।9।
मानव जीवन मिट रहा आज,
नर भक्षी हो, धिक्कार तुम्हे ।
शिष्ट नही निकृष्ट हो तुम,
कोटि कोटि धिक्कार तुम्हे ।10।
बहुत सुन चुका तेरी बातें ,
कर्ण खोल दो, मौन करो ।
मानव नही दानव हो तुम,
वाचिक उच्चता बौन करो ।11
जब निरीह जीवों को तुम,
अपना आहार बनाते हो ।
मृगतृष्णा में तुम मतवाले,
जीवों का भोज्य सजाते हो।12।
झोपड़ी से लेकर महलों तक,
जीवों से प्यास बुझाते हो ।
हम निरीह जीवों को तुम,
कष्टों के हार सजाते हो ।13।
तेरा विनाश करने आया,
बैठो घर मे,बस हृदय थाम ।
शक्ति है, तो सम्मुख आओ,
भेंजु तुम्हें परलोक धाम ।14।
शक्तिमान बनते हो तो ,
सम्मुख करके युद्ध करो ।
अगर मुझे पराजित करना है,
तो तन, मन, धन कोशुद्ध करो15
तेरी नजरों से हूँ अदृश्य,
पर महाशक्ति का स्वामी हूँ ।
ध्रुव निश्चय सा संकल्प मेरा,
क्रूर पथ का अनुगामी हूँ ।16।
स्नेह हीन वक्षस्थल है,
महाकाल का रूप मेरा ।
मानव रक्तो का प्यासा हूँ,
नाश करू सर्वस्व तेरा ।17।
भागो भागो घर मे भागो,
तुम छुप लो, जहाँ करे ईच्छा ।
मेरा सहयोगी कण कण में,
घूमो माँगो जीवन भिक्षा ।18।
निकृष्टता तेरी जब बढ़ती है,
मैं विविध रूप में आता हूँ ।
“सठम सठयम समाचरेत” का,
पाठ पढ़ा के। जाता। हूँ ।19।
सावधान हो!मानव तुम,
बहुत कर चुके तुम मनमानी।
स्नेह सिक्त जीवन रखो,
अब नही चलेगी मनमानी ।20।
जागो जागो तुम मनुज देव,
नैतिकता को सर्वोच्च करो।
त्यागो द्वेष,कलुषता को,
वैचारिक मतिअति उच्च करो 2
जिस दिन संगठित होकरके,
समरसता नदी बहाओगे ।
प्रेम पूर्ण जीवन होगा,
“कोरोना”मृत तुम पाओगे ।22
*********समाप्त**********
(रचनाकार आचार्य महेश चंद्र त्रिपाठी पहाड़ी ब्लाक के सिंधोरा गांव निवासी हैं)

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