0 विन्ध्य क्षेत्र का एक कुण्ड, जिसके पानी से स्नान करने से अधकपारी ही नही, अतरा, चौथिया, तिजारा बुखार हो जाता है छू मंतर
0 सूर्य की रोशनी से चलने वाली बनाई थी घड़ी
विमलेश अग्रहरि, मिर्जापुर।
ओमकार कुण्ड के चारों कोनों पर स्थापित पत्थर की घड़ियां कभी सूर्य की रोशनी से चला करती थीं। पर इसके निर्माता के चले जाने के बाद यह केवल एक शिलाखण्ड बनकर रह गया है। तपोवन में नेपाल नरेश ओमानन्द जी महाराज (स्वामी राजाबाबा) द्वारा बनाया गया कुण्ड छानबे विकास खण्ड के लिये एक इतिहास ही है। कुण्ड के जल से रविवार व मंगल को स्नान मात्र से अतरा, चौथिया, तिजारा एवम् अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
छानबे विकास खण्ड मुख्यालय विजयपुर से लालगंज मार्ग पर उत्तर दिशा में 4 किलोमीटर दूर स्थित तपोवन ओमकार कुण्ड का एक विशेष योगदान क्षेत्रवासियों के लिए है। वर्ष 1925 आसपास में नेपाल नरेश स्वामी राजाबाबा (ओमानन्द महाराज) अपनी गद्दी छोड़कर तप के लिए आये। तपोवन (पतरके महादेवन) पर ही उन्होंने अपने शिष्यों के सहयोग एवम् ईश्वर महिमा से ओमकार कुण्ड की स्थापना किया। धीरे-धीरे उस कुण्ड की पक्की बावली के रूप में परिवर्तित किया गया उन्होंने इस बावली के ऊपर स्थित चारों कोनों पर पत्थर का गोल आकार वाला सुडौल पत्थर रखकर सूर्य की रोशनी से चलने वाले पत्थर की घड़ी बनाई। इन चारों गोल पत्थरों में से पहले में पूरब-पश्चिम दो सुईंयां, दूसरे में पश्चिम-उत्तर व दो सुईयां, तीसरे में से एक सुई सहित केवल पूरब और चौथे में केवल पश्चिम अंकित किया। यह घड़ियां जब तक स्वामी राजाबाबा वहां पर रहे तब तक चलती रहीं। यहां से उनके चले जाने के बाद इसका चलना बन्द हो गया। कालान्तर में पश्चिम दिशा तीर सहित अंकित एक गोल पत्थर भी उस कुण्ड से गायब हो गया। उसके स्थान पर श्रद्धालुओं ने एक दूसरा बेडौल पत्थर रखकर घड़ी चलाने का प्रयास किया। पर भला ग्रामीणों में स्वामी जी जैसी शक्ति कहां जो उसे चला पाते। तपोवन कुण्ड की देखभाल में लगे स्वामी जीवनानन्द जी महाराज ने बताया कि स्वामी राजाबाबा द्वारा निर्मित इस कुण्ड का जल कभी भी समाप्त होता और न ही इसमें एक कीड़ा दिखायी पड़ता है। कुण्ड में समस्त देवालयों एवम् पवित्र स्थलों का जल भी डाला था। यहां के जल से स्नान मात्र से अतरा, चौथिया, तिजारा एवम् अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। अधकपारी जैसे रोग से मुक्ति के लिए स्वामी राजाबाबा द्वारा अधकपारी का वृक्ष भी लगाया है। कुण्ड के पास से ही स्थित इस वृक्ष के नीचे बैठने मात्र से अधकपारी सदा-सदा के लिए दूर हो जाती है।
सौ साल पहले की थी दुर्लभ आध्यात्मिक ग्रंथो की रचना, जो सभी धर्मो के लिए है उपयोगी
स्वामी राजाबाबा (नेपाल नरेश) द्वारा दर्जनों दुर्लभ माने जाने वाले ग्रंथों की रचना भी की गयी है। जिसकी काफी पुरानी प्रति विजयपुर निवासी एडवोकेट श्रीश कुमार अग्रसर के पास मौजूद है। बताया जाता है कि यह सभी पुस्तक और राजाबाबा की फोटो जिसमे उनके गुरू व गुरू भाइयो की मौजूदगी है। आदि लाने के लिए एडवोकेट श्री अग्रहरि ने बताया कि उनके पिता स्व0 अमरनाथ अग्रहरि झूसी और जबलपुर तक गये। वर्तमान मे यह सभी पुस्तके जिनका प्रथम प्रकाशन अब से लगभग नौ दशक पहले हुई थी। उनके पास सुरक्षित और संरक्षित है। रचित पांच धर्म पुस्तकें व ज्ञान चौसर क्षेत्रवासियों के लिए एक यादगार बन गये हैं। पहली पुस्तक वेदान्त सिद्धान्त मुक्तावली है। इस पुस्तक में सभी शास्त्रों एवम् वेदों के भाव में शंका समाधान के लिए अद्वैत का प्रतिपादन किया गया है। दूसरी पुस्तक जौहरी आलम उकबय नजात में वेद, शास्त्र, कुरान व अहदीस तसौफ व वेदान्त की एकता और मंत्र व आयत की समता मिलती है। पुरूषार्थ कल्पतरू राजाबाबा द्वारा रचित सर्वहितकारक सम्यक् उपदेश है। इस पुस्तक के अवलोकन मात्र से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष प्रक्रिया के साथ प्राप्त होते हैं। चौथी रचना भजन ओमावली, प्रथम में सर्वधर्म निगभागम का भाव स्पष्ट किया गया है। इसके द्वितीय भाग में वेद शास्त्र, उपनिषद्, भागवत, आयत, अहदीस के भाव प्रकट किये गये है। ज्ञान चौसर एक खेल बनाया है इसे खेलने से शुभ-अशुभ का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है। यह कौड़ियों से खेला जाता है। इस खेल के लिए उन्होंने कहा है कि आरिफ्रूल बाजी ऐ जनाब खेलो तो फिर न आना है यहां। इसको समझकर फौरन होगा मालूम खेल ही सब उसूल।
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