धर्म संस्कृति

जीवन जीने का शास्त्र हैं रामचरित मानस: बाल संत सच्चिदानंद महाराज

० श्रीराम कथा में बही ज्ञान गंगा

डिजिटल डेस्क, मीरजापुर ।

संस्कारों की विरासत को त्याग कर कोई भी भौतिक रूप से संपन्न हो सकता हैं पर वह संस्कार के मामले में जीवन भर गरीब ही रह जाता है । रामचरित मानस मात्र ग्रन्थ ही नहीं अपितु जीवन जीने का शास्त्र हैं । उक्त उदगार नगर के कटरा बाजीराव स्थित कृष्णा पैलेस में आयोजित रामकथा के दौरान बाल संत सच्चिदानंद महाराज ने व्यक्त किया । उन्होंने कहा कि राम जैसा पुत्र, भाई और पत्नी भाग्यवान को ही नसीब होता है ।

 

 

संगीतमय श्रीराम कथा के बीच व्यास पीठ से बाल संत ने कहा कि संस्कारों को त्याग कर कोई महान नहीं बन सकता । उन्होंने कहा कि भगवान राम सभी के कल्याण की कामना के साथ सबका ध्यान रखते थे । हनुमान को एक बार लंका माता सीता का पता लगाने के लिए भेजा था तो वह लंका जलाकर अा गए । दूसरी बार उन्होंने अंगद को इसलिए भेजा कि हनुमान को भेजा था पता लगाने नगर जला आया । अबकी भेजा तो कहीं रावण को ही जलाकर न आए । उन्होंने मर्यादा के बीच जीवन जीने की जरूरत जताया । रामचरित मानस जीवन जीने का शास्त्र हैं । कहा कि संस्कारों को त्यागने का ही परिणाम है कि एक बाप चार पुत्रों को पाल सकता हैं पर चार पुत्र एक मां बाप को नहीं पाल पा रहे हैं । बच्चों को उनकी सम्पत्ति से लोभ हैं । मां बाप से कोई मोह नहीं हैं । जबकि भगवान श्रीराम राजपाट को त्याग कर पिता की आज्ञा से वन गमन करना ज्यादा श्रेयस्कर मानते हुए वैभव का परित्याग कर दिया था । भगवान श्रीराम की कथा में विभोर भक्तों ने जयकारा लगाते हुए प्रभु को नमन किया ।

 

 

इस मौके पर पूजन अर्चन श्रीमती उषा त्रिपाठी एवं गोवर्धन त्रिपाठी ने किया । कथा के दौरान कैलाश नाथ द्विवेदी, डॉ० गणेश प्रसाद अवस्थी, राजेन्द्र पांडेय , श्रीधर विनोद सिंह, डॉ० संजय सिंह, कंचन त्रिपाठी, धनंजय त्रिपाठी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे ।

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