० अहरौरा कमांड के डिमांड को पूरा करने हेतु 120 क्यूसेक × 12 पम्प की जगह 150 क्यूसेक × 12 पम्प अर्थात 360 क्यूसेक क्षमता बढ़ाकर लगेगी नई पम्पे
० साथ ही नरायनपुर पंप कैनाल के कमांड में भोपौली पंप कैनाल शुभारंभ हो जाने से उसका बचा पानी भी अब मिलेगा अहरौरा कमांड को
अरविंद कुमार त्रिपाठी ‘अकेला’
अहरौरा (मीरजापुर)
जनपद के चुनार क्षेत्र का भुइली और भगवत क्षेत्र सन 1913 में धान की खेती हेतु अंग्रेजों ने चिन्हित किया और इसके सुनिश्चित सिंचाई हेतु सबसे ऊपर 3655 MCFT का धनरौल डैम बीच में 900 MCFT डोगिया डैम सबसे नीचे गरई नदी पर हुसैनपुर बियर उपरोक्त तीनों परियोजनाओ का 1913 मे शिलान्यास व सन 1916 में पूर्ण करते हुए 299 फिट अर्थ लेवल से भागवत ब्रांच और चौकिया ब्रांच नहर बनाकर धान की खेती प्रारंभ की गई, इसी कारण तब से इसे धान के कटोरा के रूप में जाना जाता है।
किसान नेता एवं किसान कल्याण समिति जरगो कमांड के महामंत्री हरिशंकर सिंह पटेल के अनुसार इस मध्य 1947 में देश आजाद हुआ तब चन्दौली व धानापुर सिंचाई करने हेतु द्वितीय पंचवर्षीय योजना के 1954 में अहरौरा डैम और 1956 में जरगो डैम का बनना प्रारंभ हुआ साथ ही 1972 में 420 क्यूसेक क्षमता की छोटी नरायनपुर पंप कैनाल का भी निर्माण चंदौली व धानापुर के सिंचाई के लिए निर्माण हुआ।
इसी कालखण्ड मे धनरौल बांध से निकलने वाली मीरजापुर नहर कैनाल जिसे एमसीडी कहा जाता है का कमांड कलवारी तक बढ़ा दिया गया जिससे धनरौल डैम के पानी का अधिकांश हिस्सा राजगढ़, घोरावल कलवारी तक में ही उपयोग होने लगा जिससे अहरौरा कमांड को धनरौल से मिलने वाला पानी का अभाव होने लगा अहरौरा कमांड की फसले1965 से 1977 के बीच अहरौरा कमांड की फसले सूखने लगी लेकिन अहरौरा कमाण्ड की फसले सूख जाने के बावजूद भी नरायनपुर पंप कैनाल का 420 क्यूसेक पानी चंदौली धानापुर को डैम और पंप कैनाल दोनों की दोहरी व्यवस्था रहने से नरायनपुर पंप कैनाल का अनवरत पानी मिलते रहने के कारण चंदौली और धानापुर आबाद रहा।
उक्त दोहरी व्यवस्था के खिलाफ 1978 में बड़ा किसान आंदोलन हुआ और तब बतौर समझौता तय हुआ कि नरायनपुर पंप कैनाल और अहरौरा तथा जरगो कमाण्ड दोनों को अलग किया जाए और अब चंदौली धानापुर को नरायनपुर पम्प कैनाल से पानी दिया जाए इस निर्णय के आधार पर अहरौरा और जरगो का पानी नरायनपुर कटका के नीचे जाना बंद कर दिया गया।
तब फिर नरायनपुर पम्प कैनाल का सन् 1986 मे क्षमता वृद्धि कर 120 क्यूसेक 14 पम्प के स्थापना का प्रावधान हुआ जिसमें से 12 पम्प चलने और 2 पम्प स्टैंड बाई इमरजेंसी हेतु प्रावधान कर सन् 1972 के 420 क्यूसेक क्षमता की नरायनपुर पम्प कैनाल को 1440 क्यूसेक क्षमता का एशिया का सबसे बड़ा पम्प कैनाल नरायनपुर पम्प कैनाल बनाया गया जिसे सामान्य भाषा में NPC भी कहते हैं।
अब विगत दो दशक सन् 2000 से पुनः अहरौरा कमाण्ड बार-बार सूखे की चपेट में आ रहा है जिसके वैकल्पिक निदान हेतु हमने सन् 2014 में अपने शोध के आधार पर नरायनपुर पम्प कैनाल का पानी हुसैनपुर बीयर में पहुंचाने का विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया और सम्बन्धित विभाग एवं तत्कालीन सरकार से मांग की कि नरायनपुर पम्प कैनाल के 12 पम्पों के 120 क्यूसेक क्षमता को 150 क्यूसेक क्षमता वृद्धि कर 360 क्यूसेक अतिरिक्त पानी उठा करके उसे हुसैनपुर बीयर में पहुंचाया जाए।
नरायनपुर पम्प कैनाल कमाण्ड में भोपौली पम्प कैनाल प्रारंभ हो गई है जिससे नरायनपुर पम्प कैनाल कमाण्ड से भोपौली पम्प कैनाल कमाण्ड अलग हो गया है और वह जो पानी अब बचेगा उसे भी हुसैनपुर बीयर में पहुंचाने का प्रावधान किया जाए।
मुगलसराय डीवाई (मुगलसराय फीडर) के बेलहर माइनर हेड पर 500 क्यूसेक क्षमता का पम्प हाउस बनाकर बेलहर राजवाहा को आवश्यक पानी बेलहर राजवाहा को वही से दे दिया जाए शेष पानी हुसैनपुर बीयर में चौकिया ब्रांच व भागवत ब्रांच हेतु उपलब्ध कराया जाए।
उपरोक्त अहरौरा कमाण्ड के डिमांड का एक बड़ा हिस्सा जो प्रमुख रूप से पानी की उपलब्धता का संकट था वह अब पूर्ण हो गया,अब नरायनपुर पम्प कैनाल कमाण्ड से भोपौली कमांड को अलग हो जाने के पश्चात वहां से बचा पानी और 360 क्यूसेक अलग से नए क्षमता वृद्धि से प्राप्त होने वाले पानी के कारण अब नरायनपुर पम्प कैनाल पर अहरौरा कमाण्ड हेतु आवश्यक पानी की व्यवस्था हो गई।
अब आगे हुसैनपुर बीयर में पानी पहुंचाने हेतु पम्प हाउस बनाने और हुसैनपुर बीयर में पानी पहुंचाने के सिस्टम को बनाना सेकंड स्टेज बाकी है जो इस कार्रवाई का अंतिम स्टेज होगा।
परिणाम संपूर्ण अहरौरा कमाण्ड में मां गंगा अवतरण होंगा और पूरा कमाण्ड धन धान्य से परिपूर्ण और सुनिश्चित सिंचाई संपन्न होगा।
इस अति लोक महत्व के कार्य हेतु प्रथम स्टेज पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु ₹65 करोड़ रुपए से नरायनपुर पम्प कैनाल की क्षमता वृद्धि 120 क्यूसेक से 150 क्यूसेक प्रति पम्प करने की कार्य योजना को शिलान्यास के लिए जनप्रतिनिधियों के प्रयास एवं पहल का किसान सदैव ऋणी रहेगा।