ठाकुर की कृपा पाने के लिए जीवन में पूर्ण समर्पण आवश्यक – पं0 शशिकांत जी
0 श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस बाल लीला का किया सुमनोहर वर्णन।
मीरजापुर।
जीवन में ठाकुर जी के प्रति जब पूर्ण समर्पण हो जाएगा तब उनकी कृपा होगी। क्षेत्र के बहुआर में विनय श्रीवस्तल के आवास पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस के अवसर पर मंगलवार को काशी से पधारे बाल ब्यास शशिकांत जी महाराज ने उक्त वर्णन करते हुए कहा कि चीर हरण के समय पहले द्रौपदी को अपने ऊपर और अपने लोगों पर अभिमान था थक- हार कर जब उसने भगवान को समर्पण के भाव से पुकारा तब भगवान ने उसकी सहायता की और लाज बचाया। श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन बड़े सुंदर ढंग से किया।
कथा प्रसंग को प्रारंभ करते हुए महाराज जी ने कहा कि जिनको काम प्रिय है वह प्रभु की कथा को नहीं सुन सकते और जिनको श्याम प्रिय है वह अपना सारा काम छोड़कर प्रभु की कथा सुनने के लिए पहुंचते हैं। मानव जीवन का एक सच है और उस सच का नाम है मृत्यु। जब हमें पता है कि हमारी मृत्यु निश्चित है हम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाएंगे तो क्यों न हम इस जीवन को धर्म के कार्यों में लगाएं ताकि मरने के बाद जब ऊपर जाए तो प्रभु हमें पहचान सकें ।
उन्होंने कहा कि हमें भगवान की भक्ति बिना कोई दिखावा किए करनी चाहिए। पूतना अपना रूप बदलकर कृष्ण भगवान को मारने आई तो प्रभु ने अपनी आंखें बंद कर लिया था क्योंकि जब हम किसी भी प्रकार का दिखावा करके भगवान की वंदना करते हैं तो भगवान हमारी बंदना को स्वीकार नहीं करते अगर हम सच्ची श्रद्धा और बिना कोई दिखावा के प्रभु की भक्ति करते हैं तो प्रभु हमें अपनी छत्रछाया में लेकर हमारे जीवन के साथ-साथ हमारी मृत्यु को भी सवार देते हैं।
उन्होंने बताया कि जब ब्रज वासियों ने इंद्र की पूजा छोड़कर गिरिराज की पूजा शुरु कर दी तो इंद्र ने कुपित होकर ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश की। श्री कृष्ण भगवान ने गिरिराज पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की और इंद्र का मान मर्दन किया। इंद्र को भगवान की सत्ता का अहसास हुआ और इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी और कहा प्रभु मैं भूल गया था कि मेरे पास जो कुछ भी है वह सब कुछ आपका ही दिया हुआ है।
इससे हमें यह सीख मिलती है कि आज हमारे पास जो कुछ भी है वह सब कुछ भगवान का दिया हुआ है उस पर हमें अभिमान नहीं बल्कि भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करना चाहिए। अंत में कलयुग की प्रधानता बताते हुए कहा “कलयुग में एक पुण्य प्रताप- मानस पूण्य होय नहीं पापा” अर्थात कलयुग में किया हुआ मानसिक पाप नहीं लगता। कथा प्रसंग में प्रभु की बाल लीलाओं को बड़े ही सुंदर ढंग से सभी भक्तों को श्रवण कराया। इस अवसर पर अमरावती देवी, सुषमा श्रीवास्तव, अंशू श्रीवास्तव, विनय श्रीवास्तव, राकेश श्रीवास्तव, संजय श्रीवास्तव, डा0 मनोज, नितेश, ऋषभ, रश्मि, प्रिया, शिवाली, शुभ, शिवम, पार्थ, देव, मानस, साची सहित बड़ी संख्या में महिला एवं पुरुष श्रद्धालु उपस्थित रहे।