0 दत्तात्रेय जयंती पर हनुमान मंदिर में पूजन, अर्चन के साथ संगोष्ठी का आयोजन
मिर्जापुर।
दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर आयोजित भजन, कीर्तन, पूजन कार्यक्रम में महात्मा रामानुज महाराज ने कहा कि दत्तात्रेय एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम है जो पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक हैं । इस पुराण में भगवान दत्तात्रेय के जन्म तथा प्रभाव की कथा में असंभव को संभव कर देने के दृष्टांत उल्लिखित हैं। खुद दत्तात्रेय की माता अनसूया ने अपने पतिव्रता धर्म के चलते असंभव कार्य को सम्भव किया। कथा के अनुसार एक पतिव्रता पत्नी के शाप के चलते 10 दिनों तक सूर्य भगवान प्रकट नहीं हुए तब देवताओं के अनुरोध पर माता अनसूया ने योग-युक्ति से शाप को समाप्त कराया ।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि 7 दिसंबर को भगवान दत्तात्रेय की जयंती के अवसर पर नगर के गैबीघाट स्थित हुनमान जी मन्दिर पर वृहद कार्यक्रम हुआ। इस अवसर पर उपस्थित डंडी स्वामी मनीष आश्रम ने कथा के बारे मे है कि एक कुष्ठरोगी ब्राह्मण की पत्नी बड़ी पतिव्रता एवं स्वामिभक्त थी लेकिन उसका पति एक वेश्या पर अनुरक्त हो गया । उसके आज्ञानुसार उसकी पतिव्रता पत्नी उसे कंधे पर बैठाकर अंधेरी रात में वेश्या के घर चली । रास्ते में मांडव्य ऋषि तपस्या कर रहे थे, जिनसे उस कुष्ठरोगी ब्राह्मण का पैर स्पर्श कर गया । मांडव्य ऋषि ने श्राप दिया कि जिसका पैर उन्हें लगा है, वह सूर्योदय होते मर जाएगा ।
इस श्राप को सुनकर पतिव्रता पत्नी ने पति की रक्षा और वैधव्य जीवन से बचने के लिए कहा-‘जाओ सूर्य उदय ही नहीं होगा । पतिव्रता पत्नी के इस संकल्प से सूर्योदय हुआ ही नहीं । इससे पृथ्वी पर हाहाकार मच गया था। ब्रह्मा ने देवताओं से कहा कि वे अत्रि ऋषि की पतिव्रता पत्नी अनसूया के पास जाएं । अनसूया कुष्ठरोगी ब्राह्मण की पत्नी के पास आईं और कहा कि तुम सूर्योदय होने दो । मैं तुम्हारे पति को अपने तपबल से जीवित कर दूंगी और उन्हें कुष्ठरोग से मुक्त भी कर दूंगी । ऐसा आश्वासन पाकर ब्राह्मण पत्नी ने सूर्योदय होने दिया और उस ब्राह्मण को अनसूया ने जीवित कर दिया ।
सूर्य के उदित न होने से प्रसन्न देवताओं से अनसूया ने ‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा जिसके बदले में देवताओं द्वारा दिए गए वरदान के चलते ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया के गर्भ से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
गोष्ठी में सनातन जनसेवा ट्रस्ट के संस्थापक अमरेश द्विवेदी ‘निराला’ तथा कचहरी आश्रम से आए महात्मा तेजबलीदास ने कहा कि भागवत के दत्तात्रेय ने चैबीस पदार्थों से अनेक शिक्षाएं ग्रहण की । इन्हीं चौबीस पदार्थों को अपना वे गुरु मानते थे ।
वे चौबीस पदार्थ हैं-पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, सागर, पतंग, मधुकर (भौंरा और मधुमक्खी), हाथी, मधुहारी (मधुसंग्रह करने वाली), हिरन, मछली, पिंगला वेश्या, गिद्ध, बालक, कुमारी कन्या, बाण बनाने वाला, सांप, मकड़ी और तितली आदि हैं। प्रारंभ में सलिल पांडेय ने स्वागत किया जबकि धन्यवाद महात्मा दिव्यानन्द ने दिया। सन्चालन विंध्यवासिनी केसरवानी ने किया। इस अवसर पर दिलीप यादव, सुरेश राठौर, राम जी निषाद, सिग्गड निषाद, विजय पटेल, सप्तमी निषाद, लुल्लूर निषाद, दिशि निषाद, देवा खत्री, नागिन साहनी, सोनू निषाद, आलोक निषाद, आकाश यादव, आशीष निषाद, अंगी निषाद, ननका शर्मा, पंकज यादव, किशन निषाद, गोलू यादव, किशन गुप्ता, रामलोचन गुप्ता, यीशु गुप्ता, सोनू निषाद, मोनू यादव, कंचन सेठ तथा पूजा मौर्य आदि उपस्थित थीं।