0 केन्द्रीय मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने 4 दिसम्बर 2014 को लोकसभा में उठायी थी यह मुद्दा केन्द्र को अब तक यूपी सरकार से रिपोर्ट न मिलने की वजह से लंबित है मामला।
Vindhy News Bureau, मीरजापुर/लखनऊ
उत्तर प्रदेश में दलहनी फसलों और सब्जियों को घडरोजो, नीलगायों और वनरोजों से ज्यादा नुकसान हो रहा है। किसानों की इस गम्भीर समस्या से निजात दिलाने के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के वन, पर्यावरण, जन्तु इस संबंध में उत्तर प्रदेश के वन, पर्यावारण, जन्तु उद्यान व उद्यान मंत्री दाराश सिंह चैहान को पत्र लिखा है। केन्द्रीय मंत्री श्रीमती पटेल ने श्री दारा सिंह चैहान से अनुरोध की है कि कृपया जनहित में महत्वपूर्ण इस विषय विशेष पर तत्काल कार्यवाही कर घड़रोेजो, नीलगायों और वनरोजो को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 अनुसूची 3 से अनुसूचि 5 में शामिल करने हेतु अनुशंसा राज्य सरकार से केन्द्र सरकार को भिजवाने का कष्ट करें, ताकि बिहार प्रदेश की तरह उत्तर प्रदेश के लिए भी भारत सरकार द्वारा आदेश जारी कराया जा सके।
केन्द्रीय मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल जी ने अपने पत्र में लिखा है कि दलहनी फसलों और सब्जियों को खाकर तहस-नहस और बर्वाद कर दिया जा रहा है, जिससे आजिज और परेशान होकर किसान दलहनी फसलों और सब्जियों की खेती कम करता चला जा रहा है, परिणाम स्वरूप मांग के अनुरूप् दाल और सब्जी पैदा नहीं हो रही है और मूल्य बढ़ रहा है।
किसानों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए केन्द्रीय मंत्री श्रीमती पटेल ने 4 दिसंबर 2014 को नियम 377 के तहत लोकसभा में मामला उठायीं और कृषि मंत्री तथा वन ,पर्यावरण एवं जंगली पशुओ को ‘पीड़क जंतु‘ मानकर इन्हे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 3 से 5 में शामिल कर मारने हेतु आदेश जारी करने की मांग की थीं, जिस पर केन्द्र सरकार ने 12 जनवरी 2015 को त्वरित कार्यवाही करते हुए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने उत्तर प्रदेश सरकार से इस विषय में रिपोर्ट की मांग की, जो उत्तर प्रदेश सरकार से इस संबंध में भारत सरकार के स्तर से अग्रिम कार्यवाही लंबित है। खास बात यह है कि बिहार सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए 19 जून 2015 को इसे पास कर इसे भारत सरकार को भेज दिया और भारत सरकार ने इसे 1 दिसंबर 2015 को मंजूरी दे दी और इन जंगली जानवरों को पीड़क जन्तु घोषित कर दिया है, इसके बाद बिहार में किसान अपनी फसल की सुरक्षा हेतु इन्हे मार सकते है।