मिर्जापुर।
जिला विज्ञान क्लब मिर्जापुर के तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला के दूसरे एवम अंतिम दिन 235 बाल वैज्ञानिकों एवम विज्ञान संचारको ने प्रतिभागिता की। कार्यक्रम के समापन सत्र में ऑन लाइन प्रतियोगिता भी आयोजित की गई। कार्यशाला के दूसरे दिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अन्य कारक एवम उनके बचाव, घरेलू पौधो से प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरण रक्षक पलाश आदि पर विशेषज्ञों ने जानकारी दी। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर ए के राय ने बताया कि पर्यावरण को प्रदूषित करने में ग्लोबल वार्मिंग महत्वपूर्ण कारक है।विश्व भर में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैस का प्रत्यक्ष एवम परोक्ष उत्सर्जन पशुओं से होता है। प्रत्यक्ष ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन मुख्यतः पशुओं के रुमैन (जुगाली करने वाले पशुओं के पेट) में किंडवन तथा खाद के सड़ने से जबकि अप्रत्यक्ष उत्सर्जन चारे की पैदावार एवम चारागाह के विकसित होने से होता है। वैश्विक स्तर पर मानव जनित ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 18 प्रतिशत पशुओं के कारण होता है। एक डेयरी गाय से लगभग 650लीटर प्रतिदिन मिथेन उत्पादन होता है, जो इनके आहार में ग्रहण की गई ऊर्जा का लगभग 10 प्रतिशत है। ताप में वृद्धि के के बारे में जानकारी देते हुए जिला विज्ञान क्लब समन्यवयक सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि ग्रीन हाउस गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा जल वाष्प सौर ऊर्जा को अवशोषित करके वैश्विक ताप वृद्धि करते है। इन गैस के उत्सर्जन से कार्बन फुट प्रिंट का आकार बढ़ता है जो हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विशेषज्ञ पी के शुक्ल ने बताया कि दूध देने वाली गाय सात गुना अधिक मेथेन पैदा करने में सक्षम है, जबकि जंगली रोमांथी पशु बहुत कम मात्रा में मिथेन गैस छोड़ते है। खाद्य एवम कृषि संगठन के अनुसार समस्त पशु धन से होने वाली ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का लगभग 9.5प्रतिशत सुअर पालन तथा पोल्ट्री से आता है। ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन से मुक्ति पाने के लिए एक समग्र कार्य योजना तैयार करनी होगी। डॉक्टर अनिता सिंह ने बताया कि भेड़ बकरियों से 10 से 16 किलोग्राम तथा गोवंश पशुओं से 60 से 160 किलोग्राम मिथेन प्रतिवर्ष उत्पन्न होती है। एक अध्ययन से पता चला कि एक किलो गो मास उत्पादित करने में 34.6 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है, जो कि किसी कार द्वारा 250किलोमीटर की दूरी तय करने में उत्सर्जित होता है। इसमें होने वाली ऊर्जा की हानि इतनी अधिक है कि इससे एक सौ वाट का बल्ब 20 दिन तक जलाया जा सकता है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के अनुसार पृथ्वी पर जीवन की संभावनाएं बढ़ाने के लिए शाकाहारी भोजन अपनाने से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। वनस्पति शास्त्री डॉक्टर ए सी मिश्र ने बताया कि पर्यावरण की रक्षा में पलाश का वृक्ष महत्वपूर्ण है।पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनो स्पार्मा है। इसे हिंदी में ढाक टेसू,संस्कृत में किंशुक, ब्रह्मावृत, रक्त पुष्पक, बंगला में पलाश, तेलगु में पलाश्मु, गुजराती में खाकरो, कन्नड़ में मंत्तुकदंडिका, उर्दू में पापड़ा, राजस्थानी में चौर, अंग्रेजी में लेम ऑफ फॉरेस्ट कहते है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक एवम पॉलीथीन की थैलियां नुकसानप्रद पाई गई। ऐसे में पलाश वृक्ष की उपयोगिता महत्वपूर्ण है।जिसके पत्ते , दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने काम में उपयोग लाए जा सकते है। पिछले 30 से 40 सालो में पलाश के 90 प्रतिशत बन नष्ट कर डाले गए। बिन पानी के बंजर ऊसर तक में उग जाने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही तो पलाश विलुप्त हो जाएगा जो पर्यावरण का एक विशेष प्रहरी है। डॉक्टर शिल्पी उपाध्याय ने बताया कि सन 1978 में लेजनीयर नामक एक रोग देखा गया जो मनुष्य के लिए प्राण घाती था। घर में उपस्थित प्रदूषित वायु को ही इसका कारक माना गया। इस रोग से पीड़ित मनुष्य की शक्ति समय के साथ साथ कम होती जाती।इससे मनुष्य में निराशा बढ़ती चली जाती। घर में प्रदूषित वायु में धूल कड़, मच्छर तथा काकरोच मारने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले लिक्विड तथा क्वाइल, कीट भागने वाले रसायन, बिजली द्वारा चालित उपयोग में लाए जाने उपकरण भी आते है। इनसे बचने के लिए घर के अंदर कुछ पौधे जैसे एगलोनिमा माडेस्टम, स्पाइडर प्लांट,गुलदाउदी, कार्डिलाइन, हेडेरा हेलिक्स, जरबेरा जेमसोनाई आदि से प्रदूषित होने से बचाए जा सकते है। कार्यक्रम के समापन सत्र में पर्यावरण पर ऑन लाइन क्विज प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमे 165बाल वैज्ञानिकों ने भाग लिया, जिसमे सौम्या सिंह प्रथम, अंकित कुमार द्वितीय, संध्या शुक्ला ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। समापन सत्र में सुशील कुमार पांडेय से सभी विशेषज्ञों एवम प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस ऑन लाइन प्लेट फार्म से हम सभी ने जो भी जानकारियां प्राप्त की इसे सभी को बता कर जागरूक करना जरूरी है। हमे किसी भी तरह किसी नवप्रवर्तन के द्वारा पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिग की समस्या के हल ढूढने होगे तभी पृथ्वी को बचाया जा सकता है।