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सहोदरों को रक्षासूत्र बांधकर स्वयंसेवकों ने लिया राष्ट्ररक्षा का संकल्प

0 आरएसएस के प्रान्त संपर्क प्रमुख दीनदयाल ने कहा- रक्षाबंधन का पर्व आपसी विश्वास का पर्व है, सक्षम समाज अन्य को विश्वास दिलाते हैं कि वे निर्भय रहें, किसी भी संकट में सक्षम समाज उनके साथ खड़ा रहेगा
मीरजापुर।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं राष्ट्र सेविका समिति मीरजापुर नगर की ओर से रक्षाबंधन उत्सव का आयोजन नगर के लालडिग्गी स्थित लायंस स्कूल के सभागार मे संपन्न हुआ। इस अवसर पर स्वयंसेवक भाई बहन ने एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन की बधाई देते हुए राष्ट्ररक्षा का संकल्प लिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य वक्ता आरएसएस काशी प्रांत के प्रान्त संपर्क प्रमुख दीनदयाल, विभाग संघचालक एडवोकेट तिलकधारी, नगर संघचालक अशोक सोनी, कलेक्ट्रेट के सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी लालबाबू ने भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांधकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। तत्पश्चात अमृत वचन एवं एकल गीत के उपरान्त प्रान्त संपर्क प्रमुख दीनदयाल का पाथेय स्वयंसेवकगण को प्राप्त हुआ।

प्रान्त संपर्क प्रमुख ने कहाकि संघ के स्वयंसेवक ‘समता’, ‘ममता’ व ‘समरसता’ के गुण से परिपूर्ण होते हैं। वे समाज की विभिन्न खूबियों व खामियों से परिचित रहते हैं तथा सदैव संघ के संस्कारों के साथ भारतीय समाज को ‘आदर्श समाज’ के रूप में सम्पूर्ण विश्व के सामने प्रदर्शित करें, ऐसा प्रत्येक स्वयंसेवक का प्रयास रहता है।

रक्षाबंधन के पर्व का महत्व भारतीय जनमानस में प्राचीन काल से है। ध्यातव्य है कि पुरातन भारतीय परंपरा के अनुसार समाज का शिक्षक वर्ग ‘रक्षा सूत्र’ के सहारे देश की महान ज्ञान परंपरा की रक्षा का संकल्प शेष समाज से कराता था। अभी भी हम देखते हैं कि किसी भी अनुष्ठान के बाद ‘रक्षा सूत्र’ के माध्यम से उपस्थित सभी लोगों को रक्षा का संकल्प कराया जाता है। इस सबके मूल अध्ययन में यही ध्यान में आता है कि लोग शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार समाज की रक्षा का संकल्प लेते हैं।

सामान्यतः रक्षा बंधन पर्व के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं। किन्तु संघ के उत्सव में इसका विस्तृत अर्थ हुआ जो कि सम्पूर्ण समाज को अपने में समेटता है। पराधीनता के कालखंड में समाज का विघटन हुआ, समाज में दूरियाँ बढीं, समाज का प्रत्येक अंग एक-दूसरे अलग रहकर सुरक्षित अनुभव करने लगा। लेकिन इससे जो नुकसान प्रत्येक वर्ग का हुआ वो अकल्पनीय था। भाषा और क्षेत्र के आधार पर समाज में द्वेष पनपने लगा, और विधर्मी व विदेशी शासकों ने इस समस्या को हल करने के बजाय इस आग में घी डालने का कार्य किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दू समाज की इस दुर्दशा को देखा, तो न केवल पीड़ा का अनुभव किया बल्कि इसके स्थायी निवारण का संकल्प भी लिया। रक्षाबंधन का पर्व आपसी विश्वास का पर्व है। इस सक्षम समाज अन्य को विश्वास दिलाते हैं कि वे निर्भय रहें। किसी भी संकट में सक्षम समाज उनके साथ खड़ा रहेगा, संघ ने इसी विश्वास को हजारों स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज में पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाया।

रक्षाबंधन के पर्व पर स्वयंसेवक परम पवित्र भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांधकर उस संकल्प का स्मरण करते हैं, जिसमें कहा गया है कि धर्मो रक्षति रक्षित: अर्थात् हम सब मिलकर धर्म की रक्षा करें। पहले स्वयंसेवक स्नान-ध्यान कर शाखा पर एकत्रित होकर बौद्धिक सुनते इसके पश्चात एक-दूसरे के रक्षासूत्र बाँधकर इस पर्व को मनाते रहे लेकिन विगत कई वर्षों में संघ के इस उत्सव को मनाने का जो मूल स्वरुप है उसके अनुरूप समाज का कोई भी वर्ग अपने को अलग-थलग न महसूस करे, इसके लिए संघ के स्वयंसेवक नगर-ग्राम-खंड की पिछड़ी बस्तियों में जाकर वहाँ निवास करने वाले बंधु-बांधवों-भगिनी-माताओं से मिलकर उनके रक्षा सूत्र बाँधकर, उनसे रक्षा सूत्र बँधवाकर उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक रक्षा का संकल्प लेकर ‘रक्षाबंधन’ का पर्व मनाते हैं तथा वर्षभर उनके साथ संपर्क में रहकर उनके सुख-दुःख में खड़े रहकर उन्हें समानता-समरसता का अनुभव कराते हैं।

अध्यक्षता मिर्जापुर कलेक्ट्रेट के सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी लालबाबू एवं संचालन सह नगर कार्यवाह रितेश ने किया। इस अवसर पर सह विभाग संघचालक धर्मराज सिंह, जिला प्रचारक विक्रांत, माया पाण्डेय, राम मिलन, सच्चिदानंद, संध्या त्रिपाठी, चंद्रमोहन, केशव नाथ तिवारी, कवि सिंह, वीरेन्द्र मौर्य, अमरेश मिश्र, शैलेष जायसवाल, विमलेश अग्रहरि, अखिलेश अग्रहरि, सोनू दीक्षित, रामकृष्ण, अखिलेश, विनोद सहित भारी संख्या मे स्वयंसेवक बंधु भगिनी उपस्थित रहे और एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधकर राष्ट्ररक्षा का संकल्प लिया।

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