मिर्जापुर

जिला आबकारी अधिकारी मिर्ज़ापुर ज्ञानेंद्र नाथ पांडे “सरल” की समसामयिक रचना “तुम्हारा प्रेम मुझमें समाया” पढ़ें 

लौट कर ऑफिस से आया
घर शांत स्थिर सूना पाया
सब बिल्कुल वैसा पड़ा था
छोड़ने उसको जब घर से गया था
कोई हलचल थी नहीं
घड़ी की टिकटिक की आवाज़
सुनाई दे रही थी कहीं
ढूंढता क्या हूँ मुझे
खुद ही पता नहीं
बसी है वो मुझमें मगर
दिखाई देती ही नहीं
वो दो कप टेबल पर पड़े थे वैसे
उनमें एक उठाया जैसे
दूसरे से आवाज आयी तुम हो कैसे
विस्मित हुआ ढूँढा उसे
घर छोड़ आया हूँ जिसे
दूसरे कमरे की चहक
बसी थी उसमें अब भी वो महक
बंद आँखें की औ खींची सांस ज्यों
वो देह की सुगंध आयी पास त्यों
पल भर लगा तुम हो यहीं
आँख खुलते खो गयी कहीं
किचेन के वो बर्तन जूठे वैसे पड़े हैं
किंकर्त्तव्यविमूढ़ हम भी खड़े हैं
उनको धुलने को जैसे हाथ बढ़ाया
पीछे भींच कर किसी ने
मुझको चिढ़ाया
क्या कभी धोया है तुमने एक बर्तन
प्रिय इसमें निरस्त करती हूँ
तुम्हारा अभ्यर्थन
खाना भी जब नहीं गया बनाया
थक हारकर बेड रूम आया
आँख बंद कर हल्के मन से
ज्यों मैं लेटा
लगा मुझको किसी ने अपने में
खुद समेटा
सर्द रात्रि में रजाई खींचकर
तुमने ओढ़ाया
स्वप्न में शिव को तुमने
जल चढ़ाया
अहसास इतना मधुर पाकर
मैं मुस्कराया
क्या हुआ दूर रहकर भी तुमको
अपने करीब पाया
मैं और तुम दोनों हैं
आत्मा परमात्मा की अवस्था
सनातन में है
अर्धनारिश्वर की व्यवस्था
अलग तुमसे नहीं मैं
ये सच है मैंने पाया
मन वचन कर्म से
तुम्हारा प्रेम मुझमें समाया |

ज्ञानेंद्र नाथ पांडे “सरल”                                                जिला आबकारी अधिकारी
मिर्ज़ापुर 

 

Banner VindhyNews
error: Right Click Not Allowed-Content is protected !!