तो क्या बलि का बकरा दिये गये पूर्व अहरौरा एस ओ प्रवीण सिंह?
अहरौरा से हरिकिशन अग्रहरि की रिपोर्ट
लिखनियां दरी में विदेशी पर्यटकों से छेड़छाड़ के मामले में दो पक्षों के बीच छेड़छाड़ को लेकर भिड़ंत हो गई थी जिसमें विदेशी पर्यटकों को न किसी प्रकार की चोट आयी थी और संघर्ष के दौरान इन लोगों ने बीच बचाव करने की कोशिश की। अहरौरा पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया और आठ आरोपियों को तुंरत सलाखों के पीछे खड़ा कर दिया। मामले में सबसे गंभीर पहलू लड़की के आरोप थे लेकिन मामले को विदेशी नागरिकों के साथ जोड़कर भारत की छवि धूमिल करने की कोशिश की गई जबकि विदेशी मेहमान पुलिस के त्वरित एक्शन और कार्रवाई से संतुष्ट थे। विदेशी मेहमान बार बार बयान देते रहे कि उनके साथ किसी प्रकार की अभद्रता नहीं हुई है। 100 नंबर पुलिस की प्रशंसा भी की गई। दूसरा मैटर ग्राम बेदौर में किसान द्वारा गोली कांड की रही जिसमें एक की मौत हो गई है। इस काण्ड में बार बार बदमाशों से बचाव में किसान द्वारा गोली चलाने का जिक्र है जबकि इस केस जितने लोगों का नाम आ रहा है, वे कभी न तो वांटेड रहे हैं और न ही इनका कोई अपराधिक रिकार्ड रहा है। आखिर ऐसा क्या हुआ जो कानून के रखवाले ही बलि का बकरा बन गये? पूर्व अहरौरा एस ओ के गुड वर्क और ईमानदारी की चर्चा पूरे जनपद में थी तो एकाएक ऐसा क्या हुआ जो गुड वर्क बैड वर्क में तब्दील हो गया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि पर्दे के पीछे किसी साजिश का जन्म हुआ था? किसान आखिरकार क्या कारण था कि वह अपने आप को असुरक्षित महसूस करता था और हथियार लेकर सोता था। अगर जानवरों से डर था तो इंसान पर गोली चलाने का क्या मतलब था? खैर, जो भी हो पर इतना तो तय है कि इसे प्रशासनिक चूक नहीं मानी जा सकती है। हां, दो सिपाहियों की वहां मौजूदगी प्रश्न खड़ा कर सकती है मगर छुट्टी के दौरान व्यक्ति को कहीं आने जाने की स्वतंत्रता पर प्रश्न नहीं खड़ा किया जा सकता है बशर्ते मकसद का स्पष्ट और ठोस प्रमाण संकलित न किया गया हो। अनुशासन पर चलने वाली पुलिस व्यवस्था में हाकिमों द्वारा मातहत तो पीटते ही हैं। बहरहाल जब तक पूरी जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती है तब तक सिर्फ एक ही एंगल से घटनाक्रम देखना भी अनुचित ही होगा।